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ठिदियं ति अहियारो
१. ठिदियं ति जं पदं तस्स विहासा । २. तत्थ तिण्णि अणियोगद्दाराणि । तं जहा - समुक्कित्तणा सामित्तमप्पाबहुअं च । ३. समुक्कित्तणाए अस्थि उकस्तयडिदिपत्तयं णिसेयद्विदिपत्तयं अधाणिसेयट्ठिदिपत्तयं उदयट्ठिदिपत्तयं च । ४. उक्कस्सयडिदिपत्तयं णाम किं ? ५. जं कम्मं बंधसमयादो कम्पट्ठिदीए उदए दीसह तमुकस्सय डिदि -
स्थितिक अधिकार
चूर्णिसू० (० - अब चौथी मूलगाथाके 'द्विदियं वा' इस अन्तिम पदकी विभापा की जाती है । इस स्थितिक-अधिकारमे तीन अनुयोगद्वार हैं । वे इस प्रकार है - समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व । समुत्कीर्तनाकी अपेक्षा चार प्रकारका प्रदेशाग्र होता है -- उत्कृष्ट स्थितिप्राप्तक, निपेकस्थितिप्राप्तक, यथानिपेकस्थितिप्राप्तक और उदयस्थितिप्राप्तक ।। १-३॥
विशेषार्थ - अनेक प्रकारकी स्थितियोको प्राप्त होनेवाले प्रदेशाग्रो अर्थात् कर्म - परमाणुओको स्थितिक या स्थिति प्राप्तक कहते हैं । ये स्थिति प्राप्त प्रदेशाग्र उत्कृष्टस्थिति, निपेकस्थिति, यथानिपेकस्थिति और उदयस्थितिभेदसे चार प्रकार के होते है । जिस विवक्षित कर्मकी जितनी उत्कृष्ट स्थिति है, उतनी स्थिति -प्रमाण वॅधनेवाला जो कर्म-प्रदेशाय बँधने के समय से लेकर अपनी उत्कृष्ट कर्मस्थितिमात्र काल तक आत्मा के साथ रहकर अपनी कर्म-स्थितिके अन्तिम समय उदयको प्राप्त हो, उसे उत्कृष्ट स्थितिप्राप्त प्रदेशाग्र कहते हैं, क्योकि वह अपनी उत्कृष्ट स्थितिको प्राप्त होकर उदय में वर्तमान है । जो कर्म - प्रदेशाय बंधकालमे जिस स्थिति मे निपिक्त किया गया, वह अपकर्षण या उत्कर्षणको प्राप्त होकर भी उस ही स्थितिमे होकर उदयकाल मे दृष्टिगोचर हो, उसे निपेकस्थितिप्राप्त प्रदेशाय कहते है । जो कर्म - प्रदेशाय वन्धकाल में जिस स्थिति मे निपिक्त किया गया, वह अपकर्षण या उत्कर्षणको नहीं प्राप्त होकर ज्यो-का-त्यो अवस्थित रहते हुए उस ही स्थितिके द्वारा उदयको प्राप्त हो, उसे यथानिपेकस्थितिप्राप्त प्रदेशा कहते है । जो कर्म- प्रदेशाय बन्धकालके पश्चात् जब कभी भी जिस किसी भी स्थिति होकर उदयको प्राप्त हो, उन्हें उदयस्थितिप्राप्त प्रदेशाय कहते है ।
अब चूर्णिकार शंका-समाधानपूर्वक इन चारों भेदोका क्रमशः स्वम्प कहते हैंशंका- उत्कृष्टस्थितिप्राप्तक नाम किसका है ? ॥ ४ ॥
समाधान- जो कर्म- प्रदेशाय बन्ध-समयसे लेकर कर्मस्थितिप्रमाणकाल तक सत्ताने रहकर अपनी कर्म-स्थितिके अन्तिम समयमे उदयमे दिखाई देता है अर्थात उदयसे प्राप्त होता है, उसे उत्कृष्टस्थितिप्राप्तक कहते हैं || ५ ॥
१. तत्थ किं हिद्रियं णाम हिदीओ गच्छत्ति विदियं पदेसभा हिदिपत्तयमिति उन क्षेत्र