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कसाय पाहुड सुत्त
[५ प्रदेशविभक्ति ११४. सबकम्माणं णाणाजीवेहि कालो कायव्यो ।
११५. अंतरं । णाणाजीवेहि सव्वकम्माणं जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । सभी प्रकृतियोके कदाचित् सर्व जीव उत्कृष्ट प्रदेश विभक्तिवाले होते है १, कदाचित् अनेक जीव विभक्तिवाले और कोई एक जीव अविभक्तिवाला होता है २, कदाचित् अनेक जीव विभक्तिवाले और अनेक जीव अविभक्तिवाले होते है ३ । इस प्रकार तीन भंग होते है। अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिके भी इसी प्रकार तीन भंग जानना चाहिए । इसी प्रकार सर्व कर्माके जघन्य अजघन्यप्रदेशविभक्तिवाले जीवोके भी तीन-तीन भंग होते हैं। आदेशकी अपेक्षा कितने ही जीवोके आठ भंग तक होते हैं, सो जयधवला टीकासे जानना चाहिए ।
चूर्णिसू०-नाना जीवोकी अपेक्षा प्रदेशविभक्तिके कालकी प्ररूपणा करना चाहिए।।११४॥
विशेषार्थ-चूर्णिकारके द्वारा सूचित और उच्चारणाचार्यके द्वारा प्ररूपित नानाजीवोकी अपेक्षा सर्व कोंकी प्रदेशसत्कर्मविभक्तिका काल इस प्रकार है-मिथ्यात्व, अनन्तानुवन्धी आदि वारह कपाय और पुरुषवेदको छोड़कर शेष आठ नोकपायोकी उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मविभक्तिका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल आवलीका असंख्यातवाँ भाग है। इन्ही काँकी अनुत्कृष्टप्रदेशसत्कर्मविभक्तिका सर्वकाल है । सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति, चारो संज्वलन और पुरुपवेदके उत्कृष्टप्रदेशसत्कर्मविभक्तिका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल संख्यात समय है । इन्ही कर्मोंकी अनुत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्मविभक्तिका सर्वकाल है । नानाजीवोकी अपेक्षा मोहकर्मकी सभी प्रकृतियोंकी जघन्य प्रदेशसत्कर्मविभक्तिका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल संख्यात समय है। सर्व कर्मोंकी अजघन्य प्रदेशसत्कर्मविभक्तिका सर्वकाल है । आदेशकी अपेक्षा उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट और जघन्य-अजघन्य प्रदेशसत्कर्मविभक्तिका काल जयधवला टीकासे जानना चाहिए।
चूर्णिसू०-अव नाना जीवोकी अपेक्षा प्रदेशविभक्तिका अन्तर कहते है-नाना जीवोकी अपेक्षा सर्व कर्मोंकी प्रदेशविभक्तिका जघन्य अन्तर काल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमित अनन्तकाल है ।। ११५॥
विशेपार्थ-मूलप्रकृतिप्रदेशविभक्तिका जिन वाईस अनुयोगद्वारोंसे इस अधिकारके प्रारंभमे वर्णन किया गया है, उनमे सन्निकर्पको मिलाकर तेईस अनुयोगद्वारोसे उत्तरप्रकृतिप्रदेशविभक्तिका वर्णन करना क्रम-प्राप्त था । किन्तु ग्रन्थ-विस्तारके भयसे चूर्णिकारने उनसे केवल स्वामित्व, एक जीवकी अपेक्षा काल और अन्तर कहकर नानाजीवाकी अपेक्षा भंगविचय, और कालके जाननेकी सूचना करते हुए नानाजीवोकी अपेक्षा प्रदेशविभक्तिका अन्तर कहा है, तथा आगे अल्पबहुत्व कहेगे। मध्यवर्ती शेय सोलह अनुयोगद्वारोका दशामर्शकरूपमे कथन किया गया है, अतएव विशेष जिज्ञासुजनोको शेष अनुयोगद्वारोसे प्रदेशविभक्तिकं विशंपपरिज्ञानार्थ जयधवला टीका देखना चाहिए ।