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गा० २२ ]
क्षीण अक्षीणस्थितिक अर्थपद-निरूपण
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पदेसग्गस्स दुसमयाहियाए आवलियाए ऊणिया कम्मट्ठिदी विदिक्कता तं पित्थ । २४. एवं गंतूण जदेही एसा ट्ठिदी एत्तिएण ऊणा कम्मट्ठिदी विदिक्कता जस्स पदेसग्गस्स तमेदिस्से द्विदीए पढ़ेसग्गं होज, तं पुण उकडणादो झीणडिदियं । २५. एवं ट्टिदिमादि काढूण जाव जहण्णियाए आवाहाए एत्तिएण ऊणिया कम्मडिदी विदिकता जस्स पदेसग्गस्स तं पि पदेसग्गमेदिस्से द्विदीए होज । तं पुण सव्यमुक्कड्डणादो झीणडिदियं । २६. आवाधार समयुत्तराए ऊणिया कम्पट्ठिदी विदिक्कता जस्स पदेसग्गस्स तं पि एदिस्से द्विदीए पदेसग्गं होअ । तं पुण उकडणादो झीणडिदियं । २७. तेण परमज्झीणट्ठिदियं । २८. समघृणाए आवलियाए ऊणिया आवाहा, एदिस्से द्विदीए विप्पा समत्ता ।
२९. दादो द्विदीदो समयुत्तराए हिदीए वियप्पे मणिस्सायो । ३०. सा पुण का ट्टिदी | ३१. दुसमणाए आवलियाए ऊणिया जा आवाहा एसा साट्ठिदी । ३२. दादिस्से दिए अवत्थवियप्पा केत्तिया १ ३३. जावदिया हेडिल्लियाए द्विदीए है, वह प्रदेशा भी इस स्थितिमे नही है । जिस प्रदेश की दो समय अधिक आवलीसे हीन कर्मस्थिति बीत चुकी है, वह प्रदेशाय भी नहीं है । इस प्रकार एक एक समय अधिकके क्रमसे आगे जाकर जितनी यह स्थिति है, उससे हीन कर्मस्थिति जिस प्रदेशाग्रकी वीत चुकी है, उसका प्रदेशा इस स्थितिमे होना सम्भव है, किन्तु वह उत्कर्षणसे क्षीणस्थितिक है । इस स्थितिको आदि करके जघन्य आवाधा तक इस मध्यवर्ती स्थितिसे हीन कर्मस्थिति जिस प्रदेश की बीत चुकी है, उस प्रदेशायका भी इस स्थितिम होना सम्भव है । यह सर्व फर्म- प्रदेश उत्कर्पण से क्षीणस्थितिक है । एक समय अधिक आवाधासे हीन कर्मस्थिति जिस प्रदेशाग्रकी बीत चुकी है, उस प्रदेशायका भी इस स्थितिमे होना सम्भव है । वह प्रदेशा भी उत्कर्पण से क्षीणस्थितिक है । उससे परवर्ती प्रदेशाय अक्षीणस्थितिक जानना चाहिए । इस प्रकार एक समय कम आवलीसे हीन जो आबाधा है, उसकी स्थिति के विकल्प समाप्त हुए ।। २२-२८ ।।
चूर्णिसू०- - अब इस पूर्व-निरुद्ध स्थितिसे एक समय अधिक जो स्थिति है, उसके अवस्तु - विकल्प कहेंगे ॥ २९ ॥
शंका- वह स्थिति कौन-सी है ? ॥ ३० ॥
समाधान- दो समय कम आवलीसे हीन जो आवाधा है, यही वह स्थिति है । अर्थात् उदयस्थिति से दो समय कम आवली से हीन आवाधामात्र ऊपर चलकर और आवाधा अन्तिम समयसे दो समय कम आवलीमात्र नीचे उतर कर पूर्व निरुद्ध स्थितिके ऊपर यह स्थिति अवस्थित है ॥ ३१ ॥
शंका - अब इस विवक्षित स्थितिके अवस्तु-विकल्प कितने है ? ||३२|| समाधान - जितने अनन्तर - प्ररूपित अधस्तन-स्थितिके अवस्तु-विकल्प है, उससे सत्कर्मफी अपेक्षा एक रूप अधिक विकल्प हैं ||३३||
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