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कसाय पाहुड सुत्त
[ ६ क्षीणाक्षीणाधिकार
५३. सामित्तं । ५४. मिच्छत्तस्स उकस्सयमोकडणादो झीणट्ठिदियं कस्स १ ५५. गुणिदकम्पसियस्स सव्वलहुं दंसणमोहणीयं खर्वेतस्स अपच्छिमट्ठिदिखंडयं संकुग्भमाणयं संछुद्धमावलिया समयूणा सेसा तस्स उकस्सयमोकडणादो झीणडिदियं । ५६. तस्सेव उक्कस्यमुक्कडणादो संकमणादो च झीणट्ठिदियं ।
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५७. उक्कस्सयमुदयादो झीणट्ठिदियं कस्स १ ५८ गुणियकम्मंसिओ संजमासंजमगुणसेढी संजमगुणसेढी च एदाओ गुणसेढीओ काऊण मिच्छत्तं गदो, जाधे गुणसेसिीसयाणि पदमसमयमिच्छादिट्टिस्स उदयमागयाणि तावे तस्स उस्सयमुदयादो झीणडिदियं ।
५९. सम्मत्तस्स उस्सय मोकडणादो उक्कणादो संकमणादो उदयादो च जघन्य और अजघन्य पदोका आश्रय करके विशेप निरूपणकी सूचना चूर्णिकारने की है । जहॉपर बहुत से कर्मप्रदेशाम अपकर्षणादिसे क्षीणस्थितिक हो, उसे उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक कहते हैं और जहॉपर सबसे कम कर्म - प्रदेशाय अपकर्पणादिके द्वारा क्षीणस्थितिक हो, उसे जघन्य क्षीणस्थितिक कहते है । इसी प्रकार अनुत्कृष्ट और अजघन्यकी अपेक्षा से भी जानना चाहिए । इस प्ररूपणाके सुगम होनेसे चूर्णिकारने उसे नही कहा है ।
चूर्णिस, ० - अव इससे आगे
क्षीणस्थितिक- अक्षीणस्थितिक प्रदेश के स्वामित्वको
कहेंगे ॥५३॥
शंका- अपकर्षणकी अपेक्षा मिथ्यात्वका उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशाय किसके होता है ? ॥ ५४ ॥
समाधान-गुणित कर्माशिक और सर्वलघु कालसे दर्शनमोहनीयके क्षपण करनेवाले जीवके होता है, जिसने कि संक्रमण किये जाने योग्य मिथ्यात्व के अन्तिम स्थितिकांड का सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिमे संक्रमण कर दिया है और जिसके एक समय कम आवली शेप रही है, उसके मिथ्यात्वका अपकर्षणसे उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशा होता है । उसी ही जीवके उत्कर्पण और संक्रमणसे भी मिथ्यात्वका उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशाय होता है ।। ५५-५६ ॥ शंका-उदयकी अपेक्षा मिथ्यात्वका उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेश किसके होता है ? ||५७||
समाधान - जो गुणितकर्माशिक जीव संयमासंयम-गुणश्रेणी और संयमगुणश्रेणी इन दोनों ही गुणश्रेणियोंको करके मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ, उस प्रथमसमयवर्ती मिथ्यादृष्टिके जिस समय वे दोनो ही गुणश्रेणीशीर्षक एकीभूत होकर उदयको प्राप्त होते है, समय मिथ्यात्वका उदयसे उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशा होता है ॥ ५८॥
उस
शंका-सम्यक्त्वप्रकृतिका अपकर्पण, उत्कर्पण, संक्रमण और उदयकी अपेक्षा उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशाय किसके होता है ? ॥ ५९ ॥