________________
झीणाझीणाहियारो
१. एतो झीणमझीणं ति पदस्स विहासा कायव्वा । २. तं जहा ३. अस्थि ओकणादो झीणट्ठिदियं, उकडणादो झीणट्ठिदियं, संकमणादो झीणडिदियं, उदयादो झट्ठिदि ।
क्षीणाक्षीणाधिकार
चूर्णिसू० - अब इससे आगे चौथी मूलगाथा के 'झीणमझीणं' इस पकी विभापा करना चाहिए | वह इस प्रकार है: - कर्मप्रदेश अपकर्षणसे क्षीणस्थितिक है, उत्कर्पणसे क्षीणस्थितिक है, संक्रमणसे क्षीणस्थितिक हैं और उदयसे क्षीणस्थितिक है ॥१-३॥
विशेषार्थ- परिणामविशेषसे कर्म - प्रदेश की अधिक स्थितिके हस्व या कम करनेको अपकर्पण कहते है । कर्मप्रदेशो की लघु स्थिति के परिणामविशेपसे बढ़ानेको उत्कर्पण कहते है । एक प्रकृति के प्रदेशको अन्य प्रकृतिरूप परिणमानेको संक्रमण कहते हैं । कर्मों के यथासमय फल- प्रदान करनेको उदय कहते है । जिस स्थितिमे स्थित कर्म-प्रदेशाम अपकर्षणके अयोग्य होते है, उन्हे अपकर्पणसे क्षीणस्थितिक कहते है और जिस स्थितिमे स्थित कर्म-प्रदेशा अपकर्षण के योग्य होते हैं, उन्हे अपकर्पणसे अक्षीणस्थितिक कहते है । इसी प्रकार जिस स्थितिके कर्म-परमाणु उत्कर्पणके अयोग्य होते है, उन्हें उत्कर्षणसे क्षीणस्थितिक और उत्कर्पण के योग्य कर्म - परमाणुओको उत्कर्पणसे अक्षीणस्थितिक कहते है । संक्रमणके अयोग्य कर्मपरमाणुओको संक्रमणसे क्षीणस्थितिक और संक्रमणके योग्य कर्म - परमाणुओको संक्रमणसे अक्षीणस्थितिक कहते है । जिस स्थितिमे स्थित कर्म - परमाणु उदयसे निर्जीर्ण हो रहे है, उन्हे उदयसे क्षीणस्थितिक कहते है और जो उदयके योग्य है, अर्थात् आगे निर्जीर्ण होगे,
ॐ ताम्रपत्रवाली प्रतिमें इस सूत्र के अनन्तर 'समुक्कित्तणा परूवणा समित्तमप्पाचहुअं चेदि' यह एक और सूत्र मुद्रित है (देखो पृ० ८७६) । पर प्रकृत स्थलको देखते हुए यह सूत्र नहीं, अपितु जयधवला टीकाका ही अश है यह स्पष्ट ज्ञात होता है । ताडपत्रीय प्रतिमे भी इसके सूत्रत्वकी पुष्टि नहीं हुई है।
१ ओक्ड्डणा णाम परिणामविसेसेण कम्मपदेसाण ट्ठिदीए दहरीकरण । तदो झीणा अप्पा ओग्गभावेण वहिदा हिंदी जस्स पदेसग्गस्स त ओक्डुगादो झीगहिदिय सव्वकम्माणमत्थि । अवा ओक्टुणादो सोणा परिहीणा जाहिदी त गच्छदित्ति ओकट्टणादो झणहिदिगमिदि समामो वायव्वो । एवमुवर सव्वत्थ । दद्दरर्राट्ठदिट्ठिदपदेसग्गाण ट्रिटदीए परिणामविसेसेण वद्रावण उपट्टणा णाम । तत्तो झीणा दिदी जस्सत पदेसग्गं सव्यपयडीणमत्थि । सकमादो समयाविरोहेण एयपर्यटपिटेसाण अष्णदयटि परिणमणक्पणादो क्षीणा ट्ठिदी जस्स त पि पदेसग्गमत्थि सन्धेमि कम्माण | उदयादो कम्मा प दाणपणादो शीणा टिठदी जस्स पढेसग्गम्म त च सव्वकम्माणमत्थि नि । जयध
ין