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कसाय पाहुड सुत्त [६ क्षीणाक्षीणाधिकार ४. ओकड्ड णादो झीणद्विदियं णाम किं ? ५. जं कम्ममुदयावलियम्भंतर द्वियं तमोकड्डणादो झीणहिदियं । जमुदयावलियबाहिरे द्विदं तमोकड्डणादो अज्झीणद्विदियं । ६. उक्कड्डणादो झीणहिदियं णाम किं ? ७. जं ताव उदयावलियपविटुं तं ताव उक्कड्डणादो झीणद्विदियं । ८. उदयावलियवाहिरे वि अत्थि पदेसग्गमुक्कड्डणादो झीणद्विदियं । तस्स णिदरिसणं। तं जहा । ९. जा समयाहियाए उदयावलियाए द्विदी, एदिस्से हिदीए जं पदेसग्गं तमादिटुं' । १०. तस्स पदेसग्गस्स जइ समयाहियाए आवलियाए ऊणिया कम्महिदी बिदिकता बद्धस्स तं कम्मं ण सक्का उक्कड्डिदु । ११. तस्सेव पदेसग्गस्स जइ वि दुसमयाहियाए आवलियाए अणियाए कम्महिदी विदिकंता तं पि उक्कड्डणादो झीणहिदियं । १२. एवं गंतूण जदि वि जहणियाए आवाहाए अणिया कम्मद्विदी विदिकंता तं पि उक्कड्डणादो झीणद्विदियं । उन्हें उदयसे अक्षीणस्थितिक कहते है। मोहनीयकर्मकी किस प्रकृतिके कर्मप्रदेश उत्कर्पण आदिके योग्य हैं, अथवा योग्य नहीं है, इसका निर्णय इस क्षीणाक्षीणाधिकारमे किया जायगा।
शंकाचू०---कौनसे कर्म-प्रदेश अपकर्षणसे क्षीणस्थितिक हैं ? ॥४॥
समाधानचू०-जो कर्म-प्रदेश उदयावलीके भीतर स्थित हैं, वे अपकर्पणसे क्षीणस्थितिक हैं । जो कर्म-प्रदेश उदयावलीके वाहिर स्थित हैं, वे अपकर्पणसे अक्षीणस्थितिक
विशेषार्थ-उदयावलीके भीतर जो कर्म-प्रदेश स्थित है, उनकी स्थिति का अपकर्पण नहीं हो सकता है, किन्तु जो कर्म-प्रदेश उदयावलीके वाहिर अवस्थित है, वे अपकर्पणके प्रायोग्य हैं, अर्थात् उनकी स्थितिको घटाया जा सकता है ।
शंकाचू०-कौनसे कर्म-प्रदेश उत्कर्पणसे क्षीणस्थितिक हैं ?
समाधानचू०-जो कर्म-प्रदेश उदयावलीमे प्रविष्ट हैं, वे उत्कर्पणसे क्षीणस्थितिक है। किन्तु जो कर्म-प्रदेशाग्र उदयावलीसे वाहिर भी अवस्थित है, वे भी उत्कर्पणसे क्षीणास्थितिक होते है । इसका निदर्शन ( उदादरण ) इस प्रकार है ॥७-८॥
चूर्णिमू०-एक समय-अधिक उदयावलीके अन्तिम समयमे जो स्थिति अवस्थित है, उस स्थितिके जो प्रदेशाग्र हैं, वे यहॉपर आदिष्ट अर्थात् विवक्षित हैं। उस कर्म-प्रदेशाग्रकी यदि बंधनेके समयमे लेकर एक समयाधिक आवलीसे कम कर्मस्थिति व्यतीत हुई है, तो उस कर्म-प्रदेशाग्रका उत्कर्पण नहीं किया जा सकता है। उस ही कर्म-प्रदेशाग्रकी यदि दो समयसे अधिक आवलीसे कम कर्मस्थिति व्यतीत हुई है तो वह भी उत्कर्षणसे क्षीणस्थितिक है, अर्थात् उस कर्मप्रदेशाप्रका भी उत्कर्पण नहीं किया जा सकता । इस प्रकार एक एक समय बढ़ाते हुए यदि जघन्य आवाधासे कम कर्मस्थिति व्यतीत हुई है, तो वह कर्म-प्रदेशाग्र भी उत्कर्पणमे क्षीणस्थितिक है, अर्थात उसका भी उत्कर्पण नहीं किया जा सकता ॥९-१२॥
आदिट विवक्खियमिदि| जयघ०