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कसाय पाहुड सुत्त
[ ५ प्रदेशविभक्ति
९७. कालो । ९८. मिच्छत्तस्स उक्कस्सपदेसविहत्तिओ केवचिरं कालादो होदि १ ९९. जहण्णुकस्सेण एगसमओ । १००. अणुक्कस्सपदेसविहत्तिओ केवचिरं कालादो होदि ? १०१. जहण्णुक्कस्सेण अनंतकालमसंखेजा पोग्गल परियट्टा । १०२. अण्णो स्वदेसो जहष्णेण असंखेज्जा लोगा त्ति । १०३. अधवा खवगं पडुच वासपुथत्तं । १०४. एवं सेसाणं कम्माणं णादूण णेदव्वं । १०५ णवरि सम्मत्त सम्मामिच्छत्तामणुक सदव्वकालो जहणेण अंतोमुहुत्तं । १०६. उक्कस्सेण वे छावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । १०७. जहण्णकालो जाणिदूण णेदव्वो ।
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चूर्णि सू०
(० - अव प्रदेशविभक्तिके कालको कहते हैं - मिध्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले जीवांका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट दोनो ही अपेक्षा से एक समयमात्र काल है | मिध्यात्वकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्टकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । अन्य आचार्योंका उपदेश है कि मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य काल असंख्यात लोकके जितने समय होते है, तत्प्रमाण है । अथवा क्षपककी अपेक्षा मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका काल वर्षपृथक्त्वप्रमाण है । इसी प्रकार से शेष कर्मोंकी प्रदेशविभक्तिका काल जान करके कहना चाहिए । विशेपता केवल यह है कि सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्व के अनुत्कृष्ट द्रव्यका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त्त है और उत्कृष्टकाल साधिक दो वार छयासठ सागरोपम है ।।९७ - १०६ ॥
विशेषार्थ - इस सूत्र से सूचित शेप कर्मोंकी प्रदेशविभक्तिका काल इस प्रकार जानना चाहिए- अप्रत्याख्यानावरणादि आठ मध्यमकपाय और हास्यादि सात नोकपायोकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है । अनुत्कृष्टप्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्टकाल असंख्यात पुगल परिवर्तनप्रमाण अनन्तकाल है । अथवा क्षपककी अपेक्षा वर्पपृथक्त्व है । अनन्तानुवन्धीचतुष्ककी प्रदेशविभक्तिका काल मिथ्यात्वके समान ही है । केवल इतना भेद है कि अनन्तानुवन्धीचतुष्ककी अनुत्कृष्टप्रदेशविभक्तिका जघन्यकाल अन्तमुहूर्त है । इसका कारण यह है कि कोई जीव अनन्तानुवन्धचतुष्कका विसंयोजन करके पुनः उसका संयोजन करके फिर भी अन्तर्मुहूर्त से उसका विसंयोजन कर सकता है । चारो संज्वलनकपाय और पुरुपवेदकी उत्कृष्टप्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है । इन्ही पाँचों कर्मोंकी अनुत्कृष्टप्रदेशविभक्तिका काल अनादि-अनन्त, अनादि- सान्त और सादिसान्त है | इनमेसे सादि-सान्त जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । स्त्रीवेदकी उत्कृष्टप्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है । स्त्रीवेदी अनुत्कृटप्रदेशविभक्तिका जघन्यकाल वर्षपृथक्त्व से अधिक दश हजार वर्ष है और उत्कृष्ट अनन्तकाल है । सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय हैं । इन्हीं दोनो कर्मोकी अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिका काल चूर्णिकारने स्वयं कहा ही है । ० - जयन्य प्रदेशविभक्तिका काल जान करके कहना चाहिए ॥ २०७ ॥
चूर्णिसू०