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गा० २२] उत्तरप्रकृतिप्रदेशविभक्ति-स्वामित्व-निरूपण
१८७ वमस्स असंखेज्जदिभागेण इथिवेदो पूरिदो । तदो सम्मत्तं लम्भिदूण पदो पलिदोवमद्विदिओ देवो जादो । तत्थ तेणेव पुरिसवेदो पूरिदो। तदो चुदो मणुसो जादो सव्वलहूं कसाए खवेदि । तदो णव॒सयवेदं पक्खिविण जम्हि इत्थिवेदो पक्खित्तो तस्समए पुरिसवेदस्स उक्कस्सयं पदेससंतकम्म' ।
१६. तेणेव जाधे पुरिसवेद-छण्णोकसायाणं पदेसग्गं कोधसंजलणे पक्खित्तं ताधे कोधसंजलणस्स उकस्सयं पदेमसंतकम्मं । १७. एसेव कोधो जाधे माणे पक्खित्तो ताधे माणस्स उक्कस्सयं पदेससंतकम्मं । १८. एसेव माणो जाधे मायाए पक्खित्तो ताधे मायासंजलणस्स उक्स्सयं पदेससंतकम्मं । १९. एसेव माया जाधे लोभसंजलणे की आयुवाले तिर्यंच-मनुष्योमे उत्पन्न होकर पुनः क्रमसे असंख्यात वर्पकी आयुवाले भोगभूमियां तिर्यंच-मनुष्योमे उत्पन्न हुआ। वहॉपर पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कालसे उसने स्त्रीवेदको पूरित किया । तत्पश्चात् सम्यक्त्वको प्राप्त कर मरा और पल्योपमकी स्थितिवाला सौधर्म-ईशानकल्पवासी देव हुआ। वहॉपर उस जीवने पुरुषवेदको पूरित किया। वहाँसे च्युत होकर मनुष्य हुआ और सर्व लघुकालसे कपायोका क्षपण प्रारम्भ किया । तत्पश्चात् सर्वसंक्रमणके द्वारा नपुंसकवेदको स्त्रीवेदमे प्रक्षिप्तकर जिस समय सर्वसंक्रमणके द्वारा स्त्रीवेदको पुरुषवेदमे प्रक्षिप्त करता है, उस समय उस जीवके पुरुपवेदका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है ।।१४-१५॥
चूर्णिसू ०-पुरुषवेदके उत्कृष्टप्रदेशसत्त्ववाले उसी उपर्युक्त जीवके द्वारा जिस समय पुरुपवेद और हास्य आदि छह नोकपायोके प्रदेशाग्र (कर्मदलिक) सर्वसंक्रमणके द्वारा क्रोधसंज्वलनमे प्रक्षिप्त किये जाते हैं, उस समय उस जीवके क्रोधसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है। यही जीव जिस समय क्रोधसंज्वलनको सर्वसंक्रमणके द्वारा मानसंज्वलनमे प्रक्षिप्त करता है, उस समय उस जीवके मानसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है। यही जीव जिस समय मानसंज्वलनको सर्वसंक्रमणके द्वारा मायासंज्वलनमें प्रक्षिप्त करता है, उस समयमे उस जीवके मायासंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसत्कर्म होता है। यही जीव जिस समय मायासंज्वलनको सर्वसंक्रमणके द्वारा लोभसंज्वलनमे प्रक्षिप्त करता है उस समय उस जीवके
१ पुरिसस्स पुरिससंकमपएसउक्कस्ससामिगम्सेव।
इत्थी जं पुण समयं संपक्खित्ता हवह ताहे ॥ ३० ॥ (चू०) जो पुरिसवेयस्स उक्कोसपदेससतसामी भणितो तत्स चेव इत्यिवेदो जम्मि समये पुरिसवेयम्मि सव्वस कमेण सकतो भवति, तम्मि समये पुरिसवेयस्स उक्कोस पदेसमतं । कम्म सत्ता० पृ०५७-५८
२ तस्सेव उ संजलणा पुरिसाइकमेण सम्वच्छोभे। (चू०)xxx जो पुरिसरेयस्स उयोमपदेसमतमामी सो नेव च उपहं सजलणाणं उक्कोसपदेमसत. सामी Ixxxजम्मि समये पुरिसवेतो सच्चसकमेण कोइस जलणाए सकतो भवति तम्मि ममये कोहसजलगाए उक्कोसपरेससत भवति | ३ तस्सेव जम्मि समये कोहसजल्या माणसजलणःए मव्वसंक मेण सकता तम्मि सगये माणसजरणाए उक्दोस पटेससत भवति । ४ तल्लेव जम्मि समए माणसजल्णा मायासजल्याए सव्वसकमेण सकता भवति तम्मि समये मायासजलणाए उक्कोसं पदेससंतं । कम्म० स० पृ० ५९.