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कसाय पाहुड सुत्त
[ ३ स्थितिविभक्ति सोलसकसाय-तिवेदाणं जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । ७८. छण्णोकसायाणं जहण्णविदिसंतकम्मियकालो जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
७९. अंतरं । ८०. मिच्छत्त-सोलसकसायाणमुक्कस्सट्ठिदिसंतकम्मिगं अंतरं जहण्णेण अंतोमुहुत्तं । ८१. उक्कस्समसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । ८२. एवं णवणोकसायाणं, णयरि जहण्ोण एगसमओ। ८३. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्सद्विदिसंतकसकवेद, इन प्रकृतियोकी जघन्य स्थितिविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है । क्योकि जघन्य स्थितिसत्त्वके उत्पन्न होनेके दूसरे ही समयमें इन प्रकृतियोका विनाश पाया जाता है । हास्य आदि छह नोकषायोकी जघन्य स्थितिविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । ॥७६-७८॥
चूर्णिम् ०-अब मोहप्रकृतियोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका अन्तरकाल कहते हैंमिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी आदि सोलह कपायोके उत्कृष्ट स्थितिसत्त्ववाले जीवोका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है ।।७९-८०॥
विशेषार्थ-सूत्रोक्त सत्तरह मोहप्रकृतियोके उत्कृष्ट स्थितिवन्धको वॉधनेवाले जीवके उत्कृष्ट स्थितिबन्धको छोड़कर अनुत्कृष्ट स्थितिवन्धको अन्तर्मुहूर्तकाल तक वॉधकर पुनः उक्त प्रकृतियोके उत्कृष्ट स्थितिवन्ध करनेपर जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण पाया जाता है । इसका अभिप्राय यह हुआ कि दोनो उत्कृष्ट स्थितिबंधोका मध्यवर्ती अनुत्कृष्ट स्थितिवन्धकाल उक्त प्रकृतियोका अन्तरकाल कहलाता है। यहाँ यह शंका की जा सकती है कि मिथ्यात्वप्रकृति
और सोलह कषायोका जघन्य अन्तर एक समयप्रमाण क्यो नहीं होता है ? इसका समाधान यह है कि उत्कृष्टस्थिति बांधकर प्रतिनिवृत्त हुए जीवके अन्तर्मुहूर्तकालके विना उत्कृष्ट स्थितिवन्ध होना असंभव है।
चूर्णिसू०-मिथ्यात्व और सोलह कपाय, इन सत्तरह मोहप्रकृतियोका उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है ॥८१॥ ।
विशेषार्थ-उक्त प्रकृतियोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धको वांधकर निवृत्त हुआ संजी पंचेन्द्रिय जीव अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धको उसके उत्कृष्ट बन्धकालके अन्तिम समय तक वॉधता हुआ समय व्यतीत करता है। तत्पश्चात् एकेन्द्रिय जीवोम उत्पन्न होकर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनकाल तक उनमे परिभ्रमण कर पुनः त्रस पंचेन्द्रियपर्याप्तक जीवोमे उत्पन्न होकर पर्याप्त हो, उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हो, पुनः उक्त प्रकृतियोके उत्कृष्ट स्थितिबंधको करनेवाले जीवके आवलीके असंख्यातवें भाग-प्रमाण असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमित उत्कृष्ट अन्तरकाल पाया जाता है।
चूर्णिसू०-इसी प्रकार हास्य आदि नव नोकपायोका अन्तरकाल जानना चाहिए । विशेप बात यह है कि इनका जघन्य अन्तरकाल एक समयमात्र है । सम्यक्त्व और सम्यमिथ्यात्व, इन दोनों प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहूतेप्रमाण है ॥८१-८३॥