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मा०.२२-].:. . उत्तरप्रकृतिअनुभाग-अन्तर-निरूपण
१६५ . .८०. एवं सम्मामिच्छत्त-अट्ठकसाय-छपणोकसायाणं । ८१. सम्मत्त-अणंताणुचंधि-चदुसंजलण-तिण्णिवेदाणं जहण्णाणुभागसंतकम्मिओ केवचिरं कालादो होदि ? ८२. जहण्णुकस्सेण एगसमओ ।
८३. अंतरं । ८४. यिच्छत्त-सोलसकसाय-णवणोकसायाणमुक्कस्साणुभागसंतकम्मियंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ८५. जहण्णेण अंतोमुहुत्तं । ८६. उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । ८७. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जहा पयडिअंतरं तहा ।
८८. जहण्णाणुभागसंतकम्पियंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ८९. मिच्छत्तअट्ठकसाय-अणंताणुवंधीणं च मोत्तण सेसाणं णत्थि अंतरं । ९०. मिच्छत्त-अट्ठकसायाणं जहण्णाणुभागसंतकम्मियंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ९१. जहण्णेण अंतोमुहत्तं । ९२. उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा । ९३.अणंताणुबंधीणं जहण्णाणुभागसंतकस्मियंतरं केवचिर कालादो होदि १ ९४. जहण्णेण अंतोमुहुत्तं । ९५. उक्कस्सेण उबड्डपोग्गलपरियट्ट ।
चूर्णिसू०-इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व, अप्रत्याख्यानावरण आदि मध्यम आठ कपाय और हास्य आदि छह नोकपायोका जघन्य अनुभागसत्कर्म-सम्बन्धी काल जानना चाहिए । सम्यक्त्वप्रकृति, अनन्तानुबन्धीचतुष्क, संज्वलनचतुष्क और तीनो वेदोके जघन्य अनुभागसत्कर्मका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है ।।८०-८२॥
चूर्णिस ०-अब अनुभागविभक्तिके अन्तरको कहते है-मिथ्यात्व, सोलह कपाय, और नव नोकषाय, इन छब्बीस मोहप्रकृतियोके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका अन्तरकाल कितना है १ जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनो प्रकृतियोका जैसा प्रकृतिविभक्तिमे अन्तर बतलाया है, उसी प्रकार यहॉपर जानना चाहिए ।।८३-८७॥
विशेषार्थ-इन दोनो प्रकृतियोका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर उपापुद्गलपरिवर्तन है।
चूर्णिसू०-मोहनीयकर्मकी सर्वप्रकृतियोके जघन्य अनुभागसत्कर्मका अन्तरकाल कितना है ? मिथ्यात्व, अप्रत्याख्यानावरण आदि आठ मध्यम कपाय और अनन्तानुबन्धीचतुष्क, इन तेरह प्रकृतियोको छोड करके शेप पन्द्रह प्रकृतियोके जघन्य अनुभागसत्कर्मका अन्तर नहीं होता है ॥८८-८९॥
विशेपार्थ-शेप पन्द्रह प्रकृतियोके जघन्य अनुभागसत्कर्मके अन्तर न होनेका कारण यह है कि उन सम्यक्त्व आदि शेप पन्द्रह प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मका आपकप्रेणीम निर्मूल विनाश हो जानेपर पुनः उत्पत्ति नहीं होती है, अतएव उनका अन्तर सम्भव नहीं है।
चूर्णिम् ०-मिथ्यात्वप्रकृति और आठ मध्यम कपायोके जघन्य अनुभागमर्मका कितना अन्तरकाल है ? जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अमंच्यात लोक है। अनन्तानुबन्धी चारो कपायोके जघन्य अनुभागसत्कर्म करनेवाले जीवांका किनना