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गा० २२] उत्तरप्रकृति अनुभागविभक्ति-अन्तर-निरूपण
१६९ केवचिरं कालादो होंति ? १२७. जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
१२८. णाणाजीवेहि अंतरं । १२९. मिच्छत्तस्स उकस्साणुभागसंतकम्मंसियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? १३०. जहण्णेण एगसमओ। १३१. उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा। १३२. एवं सेसकम्माणं । १३३. णवरि सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं णथि अंतरं।
१३४. जहण्णाणुभागकम्मंसियंतरं जाणाजीवेहि । १३५. मिच्छत्त-अर्द्धभाग है। इसका कारण यह है कि अनन्तानुवन्धी-चतुप्ककी विसंयोजना करनेवाले सम्यग्दृष्टि जीवोकी अपेक्षा क्रमसे संयोजना करनेवाले जीवोका उत्कृष्ट उपक्रमणकाल आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण पाया जाता है। सम्यग्मिथ्यात्व और हास्यादि छह नोकपायोके जघन्य अनुभागसत्कर्मवाले जीवोका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । इसका कारण यह है कि अपनी-अपनी क्षपणाके अन्तिम अनुभागखंडमे होनेवाले जघन्य अनुभागका अन्तर्मुहूर्तको छोड़कर अधिक काल नहीं पाया जाता है ॥१२०-१२७॥
चूर्णिसू०-अब नाना जीवोकी अपेक्षा अनुभागविभक्ति-सम्बन्धी अन्तर कहते हैं-मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मवाले जीवोका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोक है ॥१२८-१३१॥
विशेषार्थ-मिथ्यात्वकर्मके उत्कृष्ट अनुभागके विना त्रिभुवनवर्ती समस्त जीव कमसे कम एक समय रहते है । तत्पश्चात् द्वितीय समयमें कितने ही जीव उत्कृष्ट अनुभागका वन्ध करने लगते है, इसलिए जघन्य अन्तर एक समय ही पाया जाता है। मिथ्यात्वकर्मकी उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोक है, अर्थात् असंख्यात लोकके जितने प्रदेश है, तत्प्रमाण काल है। इसका कारण यह है कि तीनो लोकमे अधिकसे अधिक असंख्यात लोकमात्र कालतक मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागसे रहित जीव पाये जाते है, इससे अधिक नहीं, क्योकि, उत्कृष्ट अनुभागवन्धके अध्यवसायस्थान असंख्यात लोकमात्र ही होते है।
चूर्णिसू०--इसी प्रकार शंप कर्मोंक उत्कृष्ट अनुभागविभक्तिका अन्तर जानना चाहिए । केवल सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दो प्रकृतियांकी अनुभागविभक्तिसम्बन्धी अन्तर नहीं होता है ।। १३२-१३३॥
विशेपार्थ-इसका कारण यह है कि सम्यग्दृष्टियोसे मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले जीवोके अन्तरकालकी अपेक्षा सम्यक्त्वप्रकृतिके अनुभागसत्कर्म के साथ रहनेवाले मिथ्यावृष्टि और सम्यग्दृष्टि जीवोका काल असंख्यातगुणा होता है।
चूर्णिसू० - अव नाना जीवोकी अपेक्षा जघन्य अनुभागसत्कर्मचाले जीवोका अन्तर कहते है-मिथ्यात्व और आठ मध्यम कपायोका जघन्य अनुभागसम्बन्धी अन्तर नहीं होता है। क्योंकि, इन प्रकृतियोंके जघन्य अनुभागसत्कर्मवाले जीव अनन्त पाये जाते है । सम्यक्त्व,