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कसाय पाहुड सुत्त . . [४ अनुभागविभक्ति १५१. जहष्णाणुभागसंतकम्मंसियदंडओ । १५२. सव्वमंदाणुभागं लोभसंजलणस्स अणुभागसंतकम्मं । १५३. मायासंजलणस्स अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । १५४. माणसंजलणस्स अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । कोधसंजलणस्स अणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । सम्मत्तस्स जहण्णाणुभागसंतकम्ममणंतगुणं । १५५. पुरिसवेदस्स जहष्णाणुभागो अणंतगुणो । १५६. इत्थिवेदस्स जहण्णाणुभागो अणंतगुणो। १५७. णqसयवेदस्स जहणाणुभागो अणंतगुणो । १५८. सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागो अणंतगुणो। १५९. अणंताणुप्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा हीन होता है । इससे भयप्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा हीन होता है। इससे जुगुप्साप्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा हीन होता है। इससे स्त्रीवेदका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा हीन होता है। इससे पुरुषवेदका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा हीन होता है। इससे रतिप्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा हीन होता है । इससे हास्यप्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा हीन होता है । इससे सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा हीन होता है । इससे सम्यक्त्वप्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा हीन होता है ।
हास्यप्रकृतिके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मसे भी सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मको अनन्तगुणा हीन बतलानेका कारण यह है कि सम्यग्मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म द्विस्थानीय अर्थात् दारुसमान स्पर्धकोके अनन्तवे भागमे अवस्थित है, किन्तु हास्यप्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म चतुःस्थानीय अर्थात् शैलसमान स्पर्धकोमे अवस्थित है, इसलिए हास्यके अनुभागसे सम्यग्मिथ्यात्वके अनुभागका अनन्तगुणा हीन होना स्वाभाविक है । सम्यग्मिथ्यात्वसे सम्यक्त्वप्रकृतिके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मके अनन्तगुणा हीन होनेका कारण यह है कि वह देशवाती है, अतएव उसका उत्कृष्ट अनुभाग भी दारुस्थानीय अनुभागके अनन्त बहुभाग तक ही सीमित रहता है।
. चूर्णिसू०-अव जघन्य अनुभागसत्कर्मसम्बन्धी अल्पबहुत्व कहने के लिए अल्पवहुत्वदंडक कहते है-लोभसंज्वलनका जघन्य अनुभागसत्कर्म आगे कहे जानेवाले सर्व अनुभागोसे अति मन्दशक्ति होता है । लोभसंज्वलनके सर्व-मन्द जघन्य अनुभागसे मायासंज्वलनका जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा होता है। मायासंज्वलनके जघन्य अनुभागसे मानसंज्वलनका जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा होता है। मानसंज्वलनके जघन्य अनुभागसे क्रोधसंचलनका जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा होता है। क्रोधसंज्वलनके जघन्य अनुभागसे सम्यक्त्वप्रकृतिका जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा होता है। सम्यक्त्वप्रकृतिके जघन्य अनुभागसे पुरुषवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा होता है । पुरुपवेदके जघन्य अनुभागसे स्त्रीवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा होता है। स्त्रीवेदकं जघन्य अनुभागसे नपुंसकवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा होता है। नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागमे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसत्कर्म अनन्तगुणा होता है। सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य