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कपाय पाहुड सुत्त . . . [४ अनुभागविभक्ति कसायाणं णस्थि अंतरं । १३६. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्त-लोभसंजलण-पणोकसायाणं जहणाणुभागकम्मंसियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? १३७ जहण्णेण एगसमओ । १३८. उक्करसण छम्मा मा। १३९. अणंताणुबंधीणं जा पणाणुभागसंतकम्मियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? १४०. जहणेण एगसमओ। १४१. उक्कम्सेण असंखेज्जा लोगा। १४२. इत्थि-णqसयवेदजहण्णाणुभागसंतकस्मियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? १४३. जहष्णेण एगसमओ। १४४. उक्कस्सेण संखेज्जाणि वस्साणि । १४५. तिसंजलण पुरिसवेदाणं जहण्णाणुभागसंतरिमयाणमंतरं देवचिर कालादो होदि ? १४६. जहण्णेण एगसमओ । १४७ उक्कस्सेण वस्सं सादिरेयं । सम्यग्मिथ्यात्व, लोभसंचलन और हास्यादि छह नोकपायोके जघन्य अनुभागसत्कर्मवाले जीवोंका कितना अन्तरकाल है ? जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर काल छह मास है । क्योकि, दर्शनमोहकी क्षपणा व क्षपकोणीम ही इन प्रकृतियोका जघन्य अनुभाग उत्पन्न होता है और इनका उत्कृष्ट अन्तरकाल छह मास ही माना गया है। अनन्तानुवन्धी चारो कषायोके जघन्य अनुभागसत्कर्मवाले जीवोका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात लोकके जितने प्रदेश है, उतने समयप्रमाण है । क्योकि अनन्तानुबन्धी कपायके संयोजना करनेवाले परिणाम असंख्यात लोकप्रमाण पाये जाते है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य अनुभागसत्कर्मवाले जीवोका अन्तरकाल कितना होता है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल संख्यात वर्ष है ।।१३४-१४४॥
विशेषार्थ-इसका कारण यह है कि स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़नेवाले जीवोका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्वप्रमाण पाया जाता है। तीनसे लेकर नौ तककी पृथक्त्वसंज्ञा है और दो तथा दोसे ऊपरकी संख्याकी संख्यातसंज्ञा है, इसलिए उक्त दोनों वेदोका उत्कृष्ट अन्तर संख्यात वर्पप्रमाण सिद्ध हो जाता है।
___चूर्णिम०-क्रोध, मान और माया, ये तीन संचलन कपाय और पुरुपवंद, इन कर्मोके जघन्य अनुभागसत्कर्मवाले जीवोका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल सातिरेक वर्पप्रमाण है ।।१४५-१४७||
विशेपार्थ-उक्त साधिक वर्पप्रमाण उत्कृष्ट अन्तर इस प्रकार संभव है, जैसे-कोई जीव पुरुषवेदके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा, और पुरुषवेदके जघन्य अनुभागसत्कर्मको करके ऊपर चला गया । पुनः छह मासके पश्चात् अन्य कोई जीव नपुंसकवंदके उदयसे क्षपकश्रेणी पर चढ़ा । इस प्रकार संख्यात वार व्यतीत होनेके पश्चात् फिर कोई जीव पुरुपबंदके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़ा और पुरुपवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म किया। इस प्रकार पुरुपवेदका उत्कृष्ट अन्तर लब्ध हो गया। तीनो संज्वलनोका उत्कृष्ट अन्तर भी इसी प्रकार जान लेना चाहिए ।