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कसाय पाहुड सुत्त
[५ प्रदेशविभक्ति अपेक्षा उत्कृष्ट-अनुत्कृष्ट और जघन्य-अजघन्य प्रदेशविभक्तिवाले जीवोके भंगोका अन्वेषण किया गया है। भंगोके जानने के लिए यह अर्थपद है-जो जीव उत्कृष्ट प्रदेश विभक्तिवाले होते हैं, वे जीव अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले नहीं होते, तथा जो अनुत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले होते है, वे उत्कृष्ट प्रदेशविभक्तिवाले नहीं होते हैं । इस अर्थपदके अनुसार कदाचित् सर्व जीव मोहनीयकर्मकी उत्कृष्टप्रदेशविभक्तिवाले नहीं है १ । कदाचिन् अनेक जीव अविभक्तिवाले है और कोई एक जीव विभक्तिवाला है २ । कदाचित् अनेक जीव अविभक्तिवाले और अनेक जीव विभक्तिवाले होते है ३ । इस प्रकार उत्कृष्टप्रदेशविभक्ति-सम्बन्धी तीन भंग होते है। इसी प्रकार अनुत्कृष्टप्रदेशविभक्तिके भी तीन भंग होते है। भेद केवल इतना है कि उसके भंग कहते समय विभक्ति पद पहले कहना चाहिए । इसी प्रकारसे मोहनीयकर्मके जघन्य और अजघन्य प्रदेशविभक्ति-सम्बन्धी तीन-तीन भंग जानना चाहिए ।
(१६) प्रदेशविभक्ति-परिमाणप्ररूपणा-इस अनुयोगद्वारमे विवक्षित कर्मके उत्कृष्टप्रदेशविभक्तिवाले जीव एक साथ कितने पाये जाते है और अनुत्कृष्टप्रदेशविभक्तिवाले कितने पाये जाते है, इस प्रकारसे उनके परिमाणका विचार किया गया है । जैसे-मोहनीयकर्मकी उत्कृष्टप्रदेशविभक्तिवाले जीव कितने है ? असंख्यात है। अनुत्कृष्टप्रदेशविभक्तिवाले जीव कितने है ? अनन्त हैं । जघन्यप्रदेशविभक्तिवाले कितने है ? संख्यात हैं। अजघन्यप्रदेशविभक्तवाले कितने है ? अनन्त है।
(१७) प्रदेशविभक्ति-क्षेत्रप्ररूपणा-इस अनुयोगद्वारमे प्रदेशविभक्तिवाले जीवोके वर्तमानकालिक क्षेत्रका विचार किया गया है। जैसे-मोहनीयकर्मकी उत्कृष्टप्रदेशविभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमे रहते है ? लोकके असंख्यातवें भागमे रहते है। अनुत्कृष्टप्रदेशविभक्तिवाले जीव कितने क्षेत्रमे रहते है ? सर्वलोकम रहते है। इसी प्रकार जघन्य और अजघन्यप्रदेशविभक्तिवाले जीवोका क्षेत्र जानना चाहिए । चेदि । उकस्से पयद । तत्थ अठ्ठपदं-जे उक्कसपटेसावत्तिया, ते अणुक्कसपदेसस्स अविहत्तिया । जे अणुकस्सपटेसविहत्तिया ते उक्कसपटेसस्स अवित्तिया । एदेण अठ्ठपटेण दुविहो णिद्देसो-ओयेण आटेसेण य । ओषेण मोहणीयस्स उक्कस्सियाए पदेसविहत्तीए सिया सव्ये नीवा अवित्तिया १, मिया अवित्तिया च वित्तियो च २, सिया अवित्तिया च विहत्तिया च । अणुकस्सस्स विहत्तिपुव्वा तिष्णि भगा वत्तन्वा Ixxx जहष्णए पयदं । त चेव अठ्ठपद कादूण पुणो एटेण अठ्ठपदेण उकसभगो । जयध०
१ (१६) पदेसविहत्तिपरिमाणपसवणा-परिमाणं दुविह-जण्णमुक्कत्स च । उकत्सए पबद दुविहो णिद्देसो-ओषेण आदेसेण य । ओण मोहणीवस्म उवक्स्सपदेसवित्तिया केत्तिया ! अगखेज्जा, आवलियाए असखेनभागमेत्ता । अणुक्कसपटेसवित्तिया केत्तिया ? अणंता Ixxx जहण्णए पयद । दुविहो शिसो-ओषेण आदेण य । ओघेण मोहणीयत्स जहण्ण पदेसविहत्तिया केत्तिया ? सखेना । अजहण्णपदेसविहत्तिया अणता । जयध०
२(१७) पदेसवित्तिखेत्तपस्वणा-खेत्त दुविह-जहण्ण मुक्कस्स च । उक्कत्से पयद । दुविहो णिहेसोओवेण आदेमेण य । ओघेण मोहणीवत्स उक्कत्सपदेसविहनिया केवडि खेत ? लोगन्स असखेनदिमागे । अणुक्कत्तपटेमवित्तिया नब्बलोगे । जपणानह्मणपटेमवित्तियाणं रखेन उक्करमाणुक्रम्मवेत्तभगो । जयध०