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उत्तरप्रकृतिअनुभाग सत्कर्मस्थान-निरूपण
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१८५. जहा बंधे भुजगार - पदणिक्खेव वड्डीओ तहा संतकम्मे विकायन्याओ । १८६. संतकम्माणाणि तिविहाणि--बंधसमुप्पत्तियाणि हदसमुप्पत्तियाणि हृदहदसमुपत्तियाणि । १८७ सव्वत्थोवाणि बंधसमुप्पत्तियाणि । १८० हदसमुपपत्तियाणि असंखेज्जगुणाणि । १८९. हृदहदसमुप्पत्तियाणि असंखेज्जगुणाणि | विशेष अधिक है । इससे मानसंज्वलनका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । इससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। इससे मायासंज्वलनका जघन्य अनुभाग विशेप अधिक है। इससे लोभसंज्वलनका जघन्य अनुभाग विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्व प्रकृतिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है ।
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इस उपर्युक्त अल्पबहुत्व-दंडकमे शोकप्रकृति के जघन्य अनुभाग से अरतिप्रकृतिका जघन्य अनुभाग असंख्यगुणा वतलाया गया है, यह नरकगतिकी विशेषता है, ऐसी सूचना जयधवला टीकाकारने उक्त दंडक के प्रारम्भमे की है ।
चूर्णिसू० - जिस प्रकार अनुभागबन्ध मे भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धि, इन तीन अनुयोगद्वारोकी प्ररूपणा की है, उसी प्रकार यहां अनुभाग सत्कर्ममे भी करना चाहिए || १८५ ॥ चूर्णिसू ०–अनुभागसत्कर्मस्थान तीन प्रकारके होते है - चन्धसमुत्पत्तिकस्थान, हतसमुत्पत्तिकस्थान और हतहतसमुत्पत्तिकस्थान | इनमे से बन्धसमुत्पत्तिकस्थान सबसे कम है । वन्धसमुत्पत्तिकस्थानोंसे हतसमुत्पत्तिकस्थान असंख्यातगुणित हैं । हतसमुत्पत्तिकस्थानो से हतहतसमुत्पत्तिकस्थान असंख्यातगुणित है ।। १८६ - १८९॥
विशेपार्थ - जिन अनुभागस्थानोकी बन्धसे उत्पत्ति होती है, वे बन्धसमुत्पत्तिकस्थान कहलाते है । बन्धसमुत्पत्तिकस्थानोका प्रमाण यद्यपि शेप दोनो भेदोकी अपेक्षा सवसे कम है, तथापि असंख्यात लोकाकाशके जितने प्रदेश होते है, तत्प्रमाण है । इसका कारण यह है कि
१ बधात्समुत्पत्तिर्येपा तानि वधसमुत्यत्तिकानि । हते समुत्पत्तियेपा तानि हतसमुत्पत्तिकानि । हतस्य हतिः हतहतिः । ततः समुत्पत्तिर्येषा तानि हतहतिसमुत्पत्तिकानि । जयध०
याणि अणुभागसतट्ठाणाणि परूवणत्थ भण्णतिबंध-हय-हयहउत्पत्तिगाणि फमसो असंखगुणियाणि ।
उदयोदोरणवत्राणि होति अणुभागठाणाणि ॥ २४ ॥
(चू० ) जे बधातो उप्पजति अनुभागट्टाणा ते बंधुप्पत्तिमा घुञ्चति, ते अससेजलो गागासपदेसमेत्ता । कह ? भण्णइ - अणुभागव धज्यवसाणट्टाणा असखेजलो गागासपदेसमेत्ता ति काउ । 'हुतुप्पत्तिग' त्ति कि भणिय होति ? उट्टणातोव्यष्टणाउ बुद्धिहाणीतो जे उप्पजति ते ह उप्पत्तिना वच्यति । बधुष्पत्तीतो हतुप्पत्तिगा असंसेजागुणा, एक्ोक्कमि यथुत्पत्तिम्मि असखेजगुणा तव्भति त्ति । हततुप्पत्तिगाणि ति ठितिघाय-रसपायातो जे उप्पजति ते हयहतुपपत्तिगा, हतुप्पत्ती हयहतुत्पत्तिगा असंसेजगुणा । वह ? भणति - सकिस विसोहा जीवस्स समए समए अरुना भवति, असखजगुणा। XXX कम्म० सत्ताधि० पृ० ५२.
तमेव अणुभागवावारण ति तम्हा
अणुभागट्टाणाणि बघसमुप्पत्तिय हदसमुप्पत्तिय-हद हदसमुप्पत्तियअगुभाग द्वाणनेत्रेण तिविशति ति 1 XXX तस्थ हदसम्पत्तियं पादूच्छतु हुमा निगोदणाणुभाग सतराणस माणव घटटाणमादि