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कसाय पाहुड सुत्त
[४ अनुभागविभक्ति २७. एगजीवेण सामित्तं । २८. मिच्छत्तस्स उक्कस्साणुभागसंतकम्म कस्स ? २९. उकस्साणुभागं वंधिदूण जाव ण हणदि ३०. ताव सो होज्ज एइंदिओ वा वेई. दिओ वा तेइंदिओ वा चउरिदिओ वा असणी वा सण्णी वा । ३१. असंखेज्जवस्साउएसु मणुस्सोववादियदेवेसु च णत्थि । ३२. एवं सोलसकसाय-णवणोकसायाणं । ३३. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमुक्कस्साणुभागसंतकम्म कस्स ? ३४. दसणमोहक्खवगं मोत्तूण सव्वस्स उक्कस्सयं । ३५. मिच्छत्तस्स जहण्णयमणुभागसंतकम्मं कस्स ? ३६. सुहुमस्स । ३७. हदसमुप्पत्तियकम्मेण अण्णदरो एइंदिओ वा वेइ दिओ वा तेइ दिओ
चूर्णिसू०-अब एक जीवकी अपेक्षा अनुभागविभक्ति के स्वामित्वका निरूपण करते है-मिथ्यात्वप्रकृतिका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? उत्कृष्ट संक्लेशके द्वारा मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभागबंध करनेवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि जीवके होता है । इस प्रकारका जीव मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागको बाँधकर जव तक कांडकघातके द्वारा उसका घात नहीं करता है, तब तक वह जीव उस उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मके साथ मरण करके चाहे एकेन्द्रिय हो जाय, या द्वीन्द्रिय, या त्रीन्द्रिय, या चतुरिन्द्रिय, या असंज्ञी पंचेन्द्रिय अथवा संजी पंचेन्द्रिय हो जाय, अर्थात् इनमेसे किसी में भी उत्पन्न हो जाय, तो भी वह मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका स्वामी रहेगा । किन्तु असंख्यात वर्षकी आयुवाले भोगभूमियाँ तिर्यच
और मनुष्य जीवोमे, तथा मनुष्योमे ही उत्पन्न होनेवाले आनत-प्राणत आदि कल्पवासी देवोमे उसकी उत्पत्ति नहीं होती है । क्योकि, इनमे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म नहीं पाया जाता है। इसी प्रकार सोलह कषायो और नव नोकपायोका स्वामित्व जानना चाहिए, क्योकि, मिथ्यात्वके स्वामित्वसे इनके स्वामित्वमे कोई विशेपता नहीं है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनो प्रकृतियोका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? दर्शनमोहकर्मके क्षपण करनेवाले जीवको छोड़कर सबके इन दोनो प्रकृतियोका उत्कृष्ट अनुभागसत्कर्म होता है । इसका कारण यह है कि दर्शनमोहनीय-आपकके सिवाय अन्य जीवोमे इन दोनो प्रकृतियोका अनुभागकांडकघात नहीं होता है ।।२७-३४॥
अब जघन्य अनुभागसत्कर्मके स्वामित्वको कहते है
चूर्णिसू०-मिथ्यात्वकर्मका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है १ सूक्ष्म निगोदिया एकेन्द्रिय जीवके होता है ॥३५-३६॥
___ इस जघन्य अनुभागसत्कर्मके साथ वह सूक्ष्मनिगोदिया एकेन्द्रिय जीव मरणकर किस-किस जातिके जीवोमे उत्पन्न हो सकता है, इस वातके वतलानेके लिए चूर्णिकार उत्तरसूत्र कहते है
चूर्णिसू ०-हतसमुत्पत्तिक कर्मके साथ वह सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव मरणकर कोई एक
१-हते धातिते समुत्पत्तिर्यस्य तद्वतसमुत्पत्तिक कर्म | अणुभागसतकम्मघादिदे जमुवरिद जद्दण्णाणुभागसतकम्म तत्स हदसमुप्पत्तियकम्ममिदि सण्णा त्ति मणिद होदि । जयध०