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कसाय पाहुड सुन्त
[ ४ अनुभागविभक्ति
जहण्णयमणुभागसंतकम्मं कस्स १ ४६. खवगस्स चरिमसमयअसं कामयस्स । ४७. एवं माण- मायासंजलणाणं । ४८. लोभसंजलणस्स जहण्णयमणुभागसंतकम्मं कस्स १ ४९. खवगस्स चरिमसमयसकसायस्स । ५० इथिवेदस्स जहण्णयमणुभागसंतकम्पं कस्स १ ५१. खवयस्स चरिमसमयइत्थि वेदयस्स । ५२. पुरिसवेदस्स जहण्णाणुभाग संतकम्पं कस्स १ ५३. पुरिसवेण उचट्टिदस्स चरिमसमयअसं कामयस्स । ५४. बुंसयवेदस्स जहष्णाणुभागसंतकम्मं कस्स ? ५५. खवगस्स चरिमसपयणकुंसयवेदयस्स । ५६. छण्णोकसायाणं जहष्णाणुभागसंतकम्मं कस्स १५७. खवगस्स चरिमे अणुभागखंडर वट्टमाणस्स । वाले जीवके होता है ॥ ४१-४४॥
विशेषार्थ - जो जीव अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन करके पुनः नीचे गिरकर उसका संयोजन करता है, उस जीवके संयोजन करने के प्रथम समय में अनन्तानुबन्धी कपाका सर्व जघन्य अनुभाग पाया जाता है ।
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चूर्णिसू० - क्रोधसंज्वलन कषायका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? चरम - समयवर्ती असंक्रामक क्षपकके होता है ।। ४५-४६॥
विशेषार्थ - क्रोधकर्षायके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़नेवाले और क्रोधके चरम समयप्रबद्धकी अन्तिम अनुभागफालीको धारण करके स्थित क्षपकको चरमसमयवर्ती असंक्रामक क्षपक कहते है । ऐसे जीवके क्रोधसंज्वलनका जघन्य अनुभागसत्त्व पाया जाता है ।
चूर्णि० - इसी प्रकार मानसंज्वलन और मायासंज्वलन, इन दोनो कपायों के जघन्य अनुभागसत्कर्मके स्वामित्वको जानना चाहिए ||४७॥
विशेषार्थ - जिस प्रकार चरम समयवर्ती असंक्रामक क्षपके क्रोधसंज्वलन के जधन्य अनुभागसत्कर्मका स्वामित्व वतलाया गया है, उसी प्रकारसे संज्वलन मान और माया के जघन्य स्वामित्वको कहना चाहिए । विशेषता केवल यह है कि स्वोदयसे अथवा अपने अधस्तनवर्ती कपायके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़नेवाले जीवके उस कषायके अनुभागसत्कर्मका जघन्य स्वामित्व होता है ।
चूर्णिसू० - लोभसंज्वलनका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? चरमसमयवर्ती सकषायी सूक्ष्मसाम्परायिक क्षपकके होता है । स्त्रीवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? चरमसमयवर्ती लीवेदक क्षपकके होता है । पुरुषवेदका जघन्य अनुभाग सत्क किसके होता है ? पुरुषवेदके उदयसे क्षपकश्रेणीपर चढ़नेवाले चरमसमयवर्ती असंक्रामक क्षपकके होता है । नपुंसकवेदका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? चरमसमयवर्ती नपुंसकवेदी क्षपकके होता है । हास्यादि छह नोकषायोका जघन्य अनुभागसत्कर्म किसके होता है ? चरम अनुभागकांडकमै वर्तमान क्षपकके होता है ||४८-५७॥
विशेषार्थ-उपर्युक्त प्रकृतियोका जघन्य अनुभागसत्कर्म क्षपकश्रेणीमे अपनी उदयव्युच्छित्ति कालमे अर्थात् अन्तिम समय मे जनन्य अनुभाग होता है, ऐसा जानना चाहिए ।