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गा० २२] स्थितिविभक्ति-भंगविचय-निरूपण
१०७ विहत्तिओ च । ९५. सिया अविहत्तिया च विहत्तिया च (३)। ९६. अणुक्कस्सियाए द्विदीए सिया सव्वे जीवा विहत्तिया । ९७ सिया विहत्तिया च अविहत्तिओ च । ९८. सिया विहत्तिया च अविहत्तिया च । ९९. एवं सेसाणं पि पयडीणं कायन्यो । १००. जहण्णए भंगविचए पयदं । १०१. तं चेव अट्ठपदं । १०२. एदेण अट्ठपदेण मिच्छत्तस्स सव्ये जीवा जहणियाए द्विदीए सिया अविहत्तिया। १०३. सिया जीव मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति नहीं करनेवाले और अनेक जीव उत्कृष्ट विभक्ति करनेवाले होते है । क्योकि, अनन्त जीवोके उत्कृष्ट विभक्ति नहीं करते हुए भी उनमे संख्यात अथवा असंख्यात जीवोके उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिकी संभावना पाई जाती है। इस प्रकारसे ये उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति-अविभक्तिसम्बन्धी उपयुक्त (३) तीन भंग होते है ॥९३-९५।।
चूर्णिसू०-कदाचित् सर्व जीव मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्टस्थितिकी विभक्ति करनेवाले होते है, क्योकि, किसी कालमे उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके विना त्रिभुवनवर्ती अशेप जीव अनुत्कृष्ट स्थितिमे ही अवस्थित पाये जाते है । कदाचित् अनेक जीव मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्टस्थितिकी विभक्ति करनेवाले होते है और कोई एक जीव अनुत्कृष्टस्थितिकी विभक्ति नहीं करनेवाला होता है । इसका कारण यह है कि कभी किसी कालमे एक अनुत्कृष्ट स्थितिकी विभक्ति नहीं करनेवाले जीवके साथ शेप सकल जीव अनुत्कृष्टस्थितिकी विभक्ति करनेवाले पाये जाते है। कचित् कदाचित् अनेक जीव मिथ्यात्वकी अनुत्कृष्ट स्थितिकी विभक्ति करनेवाले और अनेक जीव विभक्ति नहीं करनेवाले होते है । इसका कारण यह है कि कभी किसी कालमे अनुत्कृष्टस्थिति विभक्ति करनेवाले अनन्त जीवोके साथ संख्यात अथवा असंख्यात उत्कृष्टस्थिति विभक्ति करनेवाले भी जीव पाये जाते है ॥९६-९८॥
चूर्णिसू०-इसी प्रकार मिथ्यात्वप्रकृतिकी नाना जीवोके साथ भंगविचय-प्ररूपणाके समान शेप सम्यग्मिथ्यात्व आदि मोह-प्रकृतियोकी भी भंगविचय-प्ररूपणा करना चाहिए ॥१९॥
__ चूर्णिसू०-अब नानाजीवोकी अपेक्षा मिथ्यात्व आदि प्रकृतियोकी जघन्य स्थितिविभक्ति-सम्बन्धी भंगविचय-प्ररूपणा की जाती है। यहॉपर भी वही अर्थपद है जो कि उत्कृष्टस्थिति विभक्तिमे ऊपर कह आये हैं । केवल यहाँ भंग कहते समय उत्कृष्ट-अनुत्कृष्टके स्थानपर क्रमशः जघन्य और अजघन्य स्थितिविभक्ति कहना चाहिए । इस अर्थपदकी अपेक्षा सर्व जीव मिथ्यात्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिकी कदाचित् विभक्ति करनेवाले नहीं होते है। क्योकि, कदाचित् सर्वजीवोका मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिमे ही अवस्थान देखा जाता है । कदाचित् अनेक जीव मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति-विभक्ति करनेवाले नहीं होते है और कोई एक जीव विभक्ति करनेवाला होता है । क्योकि, किसी समय मिथ्यात्वकी अजघन्य स्थितिधारकोके साथ कोई एक जीव जघन्य स्थितिका धारक भी पाया जाता है। कदाचित् अनेक जीव मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिकी विभक्ति नहीं करनेवाले और अनेक विभक्ति करनेवाले होते हैं, क्योकि, किसी कालमे अजघन्य स्थितिविभक्ति करनेवाले अनन्त जीवोके साथ संख्यात