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गा० २२] स्थितिसत्कर्मस्थान-अल्पवहुत्व-निरूपण
१४५ णीयउवसामयस्स अणियट्टिअद्धा संखेज्जगुणा । ३९४. अपुब्धकरणद्धा संखेज्जगुणा ।
३९५. एत्तो द्विदिसंतकम्मट्ठाणाणमप्पाबहुअं । ३९६. सव्वत्थोवा अट्ठण्हं कसायाणं हिदिसंतकम्मट्ठाणाणि । ३९७. इत्थि-णसयवेदाणं द्विदिसंतकम्मट्ठाणाणि तुल्लाणि विसेसाहियाणि । ३९८. छण्णोकसायाणं हिदिसंतकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ३९९. पुरिसवेदस्स हिदिसंतकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियणि । ४००. कोधसंजलणस्स द्विदिसंतकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ४०१. माणसंजलणस्स हिदिसंतकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ४०२. मायासंजलणस्स हिदिसंतकस्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ४०३. लोभसंजलणस्स हिदिसंतकम्माणाणि विसेसाहियाणि । ४०४. अणंताणुवंधीणं चदुण्हं द्विदिसंतकस्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ४०५. मिच्छत्तस्स द्विदिसंतकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ४०६. सम्मत्तस्स हिदिसंतकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि । ४०७. सम्मामिच्छत्तस्स हिदिसंतकम्मट्ठाणाणि विसेसाहियाणि ।
काल संख्यातगुणित है । अनन्तानुवन्धी-विसंयोजकके अनिवृत्तिकरणकालसे उसीके अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणित है। अनन्तानुबन्धी-विसंयोजकके अपूर्वकरणकालसे दर्शनमोहनीयकर्मके उपशमन करनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणका काल सग्यातगुणित है। दर्शनमोहनीयउपशमनके अनिवृत्तिकरण-कालसे उसीके अपूर्वकरणका काल संख्यातगुणित है॥३८४-३९४।।
चूर्णिसू०-अब इससे आगे मोहनीयकर्मसम्बन्धी स्थितिसत्कर्मस्थानाके अल्पबहुत्वको कहते है-अप्रत्याख्यानावरण आदि आठ मध्यम कपायोके स्थितिसत्कर्मस्थान आगे कहे जानेवाले सर्वपदोकी अपेक्षा सबसे कम है। आठो मध्यम कपायोके स्थितिसत्कर्मस्थानासे स्त्री और नपुंसक, इन दोनो वेदोके स्थितिसत्कर्मस्थान परस्पर तुल्य होते हुए भी विशेष अधिक है । स्त्री और नपुंसकवेदके स्थितिसत्कर्मस्थानोसे हास्यादि छह नोकपायोकं स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक है। छह नोकपायोके स्थितिसत्कर्मस्थानोसे पुरुपवेदके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक है । पुरुपवेदके स्थितिसत्कर्मस्थानोसे क्रोधसंज्वलनकपायके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेप अधिक है । क्रोधसंचलनके स्थितिसत्कर्मस्थानोसे मानसंचलनके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेप अधिक है । मानसंज्वलनके स्थितिसत्कर्मस्थानोसे क्रोधसंचलनके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेप अधिक है। लोभसंज्वलनके स्थितिसत्कर्मस्थानोसे अनन्तानुवन्धी चारो कपायोके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक है । अनन्तानुबन्धी चारो कपायोके स्थितिसत्कर्मस्थानोसे मिथ्यात्वकर्मके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेप अधिक है। मिथ्यात्वके स्थितिसत्कर्मस्थानांसे सम्यक्त्वप्रकृतिके स्थितिसत्कर्मस्थान विशेप अधिक हैं। सम्यक्त्वप्रकृतिक स्थितिसत्कर्मस्थानोसे सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति के स्थितिसत्कर्मस्थान विशेष अधिक हैं ॥३९५-४८७।।
विशेपार्थ-यहाँ प्रकरणमे उपयोगी समझकर जयधवला टीकाक अनुगर प्रतिपक्षवन्धककालको आश्रय करके अभव्यसिद्धिकोके प्रायोग्य स्थितिसत्कर्मन्थानाका अल्पवात्व