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कसाय पाहुड सुत्त
[ ४ अनुभागविभक्ति ३. उत्तरपयडिअणुभाग चिहत्ति वत्तस्सामो । ४. पुव्वं गमणिज्जा इमा परूवणा । (३) वृद्धि - इस अनुयोगद्वार मे समुत्कीर्तनादि तेरह अनुयोगद्वारोसे कर्मोंके अनुभागकी पड़गुणी वृद्धि, हानि और अवस्थानका विचार किया गया है ।
( ४ ) स्थानप्ररूपणा - इस अनुयोगद्वार मे अनुभागविभक्ति के वन्धसमुत्पत्तिक, हतसमुत्पत्तिक और हतहत समुत्पत्तिक अनुभागस्थानोका प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व के द्वारा विचार किया गया है ।
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उपर्युक्त सर्व अनुयोगद्वारोका आदेशकी अपेक्षा विशेष विवेचन जिज्ञासुजनो को जयधवला टीकासे जानना चाहिए ।
चूर्णिसू० ० - अव उत्तरप्रकृति - अनुभागविभक्तिको कहेगे | उसमे यह आगे कही जाने - वाली स्पर्धकप्ररूपणा प्रथम ही जानने योग्य है । क्योकि उसके विना सर्वघाती और देशघाती - का भेद तथा अनुभागके स्थानोका परिज्ञान नही हो सकता है ॥ ३-४ ॥
विशेषार्थ - जीवके सम्यक्त्व आदि गुणोंके एक भाग घात करनेवाले कर्मको देशघाती कहते है | उन्हीं सम्यक्त्व आदि गुणोके सम्पूर्ण रूपसे बात करनेवाले कर्मको सर्वघाती कहते है । इन दोनोका नाम घातिसंज्ञा है । लता, दारु, अस्थि और शैलसमान अनुभागकी शक्तिको अनुभागस्थान कहते है । इन चारो दृष्टान्तोमे जैसे लता (वेल) सबसे कोमल होती है, उसी प्रकार जिस कर्मस्कन्धके अनुभागमे फल देनेकी शक्ति सबसे कोमल, कम या मन्द होती है उसे लतासमान एकस्थानीय अनुभाग कहते है । दारु काठ या लकड़ीको कहते हैं । जैसे लतासे दारू कठोर होता है, उसी प्रकार जिस कर्मस्कन्धमे फल देनेकी शक्ति लतास्थानीय अनुभाग से तीव्र या अधिक कठिन होती है, उसे दारुसमान द्विस्थानीय अनुभाग कहते है । अस्थि नाम हड्डीका है । जैसे दारुसे अस्थि अधिक कठिन होती है, उसी प्रकार जिस कर्मस्कन्धमे अनुभागशक्ति दारुस्थानीय अनुभागसे भी अधिक तीव्र होती है उसे अस्थिसमान त्रिस्थानीय अनुभाग कहते हैं । शैल नाम शिलासमूह या पापाणका है । जैसे अस्थिसे शैल अत्यन्त कठोर होता है, उसी प्रकार जिस कर्म पिडमे फल देनेकी शक्ति अस्थिस्थानीय अनुभागसे भी अत्यधिक तीव्र होती है, उसे शैलसमना चतु: स्थानीय अनुभाग कहते हैं । इन चारों अनुभागस्थानोका नाम स्थानसंज्ञा है । मोहकर्मके अट्ठाईस भेदोमे से किसी कर्मकी अनुभागशक्ति एकस्थानीय होती है, किसीकी द्विस्थानीय, किसीकी एकस्थानीय और द्विस्थानीय, किसी कर्मी त्रिस्थानीय, किसीकी एकस्थानीय द्विस्थानीय और त्रिस्थानीय होती है। किसी कर्मकी चतुः स्थानीय और किसीकी एकस्थानीय द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय और चतुःस्थानीय होती है | इसका विशद विवेचन आगे सूत्रकार स्वयं करेंगे । इन चारों अनुभागस्थानामसे लतास्थानीय अनुभागकी सम्पूर्ण और दाम्स्थानीय अनुभाग की अनन्त बहुभाग शक्ति देशघाती कहलाती है । उससे ऊपर अर्थात् दारुस्थानीय अनुभागका अनन्तवा भाग और अस्थिम्थानीय तथा शैलम्थानीय अनुभागशक्ति सर्वघाती कहलाती है ।