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कसाथ पाहुड सुत्त
[ ३ स्थितिविभक्ति
३३६. संखेज्जभागहाणीए जहणेण 'एगसमओ । ३३७. उकस्सेण जहण्णमसंखेज्जयं तिरूवूणयमेतिए समए । ३३८. संखेज्जगुणहाणि असंखेज्जगुणहाणीणं जहण्णुकस्सेण एगसमओ । ३३९. अवदिट्ठिदिविहत्तिया केवचिरं कालादो होंति ? ३४०. जहणेण एगसमओ । ३४१. उक्कस्सेण अंतो मुहुत्तं ।
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जीव भोगभूमिमे उत्पन्न हुआ और वहॉपर वेदक-प्रायोग्य दीर्घ- उद्वेलनकालप्रमित आयुष रहनेपर प्रथमसम्यक्त्वको ग्रहणकर और अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् मिथ्यात्वको प्राप्त होकर हॉपर पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र कालको विताकर अपनी आयुके अन्तमे वेदकसम्यक्त्वको ग्रहण करके देवोमे उत्पन्न हुआ और फिर पूर्वके समान एक सौ तिरेसठ सागरकाल तक देव और मनुष्योमे परिभ्रमण करके अन्त मे मनुष्योंमे उत्पन्न हुआ और वहॉपर भुजाकारबन्ध किया । इस प्रकार से पल्योपमके असंख्यातवे भागसे अधि तिरेसठ सागरोपम मिथ्यात्वकी असंख्यात भागहानिका उत्कृष्टकाल सिद्ध हो जाता 1
चूर्णिसू० - मिथ्यात्वकर्मकी संख्यात भागहानिका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन रूपसे कम जघन्यपरीता संख्यात के समयप्रमाण है ॥ ३३६-३३७॥
विशेषार्थ - दर्शनमोहके क्षपणकालमे अथवा अन्य समय पल्योपमके संख्यातवें भागप्रमाण स्थितिखंडोके घात करनेपर संख्यात भागहानिका एक समयमात्र जघन्यकाल पाया जाता है । संख्यात भागहानिका उत्कृष्टकाल तीनरूपसे कम जघन्य परीतासंख्यात के जितने समय होते है, तत्प्रमाण है । इसका कारण यह है कि दर्शनमोहके क्षपणकालमे मिध्यात्वकर्मके चरम स्थितिखंडके घात कर दिये जानेपर तथा उद्यावलीने उत्कृष्ट संख्यातमात्र निषेकस्थितियोके अवशिष्ट रह जानेपर संख्यात भागहानिका प्रारम्भ होता है । वहाँ से लगाकर तबतक संख्यातभागहानि होती हुई चली जाती है, जबतक कि उदयावलीमे तीन समयकालवाली दो निषेकस्थितियाँ अवस्थित रहती है । इस प्रकार सूत्रोक्त उत्कृष्टकाल सिद्ध होता है ।
चूर्णिसू० - मिथ्यात्वकर्मकी संख्यातगुणहानि और असंख्यातगुणहानि, इन दोनोका जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समयमात्र है ॥ ३३८ ॥
विशेषार्थ-३ - इसका कारण यह है कि दर्शनमोहके क्षपणकालमे पल्योपमप्रमित स्थिति - सत्त्वसे लगाकर दूरापकृष्टिप्रमित स्थितिसत्त्वके अवशिष्ट रहने तक मध्यवर्त्ती अन्तरकालमे पतमान स्थितिखंडोके पतित होनेपर संख्यातगुणहानि होती है और उसका काल एक समय ही होता है, क्योकि चरमफालीको छोड़कर अन्यत्र मिध्यात्वकी संख्यातगुणहानि नहीं होती है । तथा दूरापकृष्टसे लेकर चरम स्थितिखंडकी चरमफाली तक मध्यवर्ती अन्तरालमे स्थितिखंडो के पतित होनेपर मिथ्यात्वकर्मकी असंख्यातगुणहानि होती है । इसका भी काल एक समय ही है, क्योकि, स्थितिखंडोकी चरमफालीने ही मिथ्यात्वकी असंख्यातगुणहानि पाई जाती है । चूर्णि सू० - मिथ्यात्व कर्मकी अवस्थित स्थितिविभक्तिका कितना काल है ? जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥३३९-३४१॥