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गा० २२]
स्थितिविभक्ति-अन्तर-निरूपण ३४२. सेसाणं पि कम्माणमेदेण वीजपदेण णेदव्वं ।
३४३. एगजीवेण अंतरं। ३४४. मिच्छत्तस्स असंखेज्जभागवड्डि-अवट्ठाणद्विदिविहत्तियंतरं केवचिरं । ३४५. जहण्णेण एगसमयं । ३४६. उक्कस्सेण तेवहिसागरोवमसदं तीहि पलिदोवमेहि सादिरेयं । ३४७. संखेन्जभागवड्डि-हाणि-संखेज्जगुणवड्डि-हाणिहिदिविहत्तियंतरं जहष्णेण एगसमओ। हाणी अंतोमुहत्तं । ३४८, उक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । ३४९. असंखेज्जगुणहाणिहिदिविहत्ति-अंतरं जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । ३५०. असंखेज्जभागहाणिद्विदिविहत्तियंतरं जहण्णेण एगसमओ । ३५१. उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । ३५२. सेसाणं कम्पाणमेदेण बीजपदेण अणुमग्गिदव्यं ।
विशेपार्थ-इसका कारण यह है कि भुजाकार अथवा अल्पतर स्थितिविभक्तिको करके जघन्यसे एक समय और उत्कर्पसे अन्तर्मुहूर्त तक अवस्थितविभक्ति करनेपर सूत्रोक्त जघन्य और उत्कृष्टकाल पाया जाता है ।
चूर्णिसू०-जिस प्रकारसे मिथ्यात्वकर्मकी असंख्यातभागहानि-वृद्धि आदिके जघन्य और उत्कृष्टकालोकी प्ररूपणा की है उसी प्रकारसे शेप कर्मोंकी भी हानि और वृद्धियोके जघन्य तथा उत्कृष्ट कालोंको इसी उपयुक्त वीजपदके द्वारा जान लेना चाहिए ॥३४२॥
___ चूर्णिसू०-अव उक्त वृद्धि, हानि आदि-सम्बन्धी अन्तरका एक जीवकी अपेक्षा निरूपण किया जाता है-मिथ्यात्वकर्मकी असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थानस्थितिविभक्तिका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तरकाल एक समय है ॥३४३-३४५॥
विशेषार्थ-क्योकि, असंख्यातभागवृद्धि और अवस्थानको पृथक्-पृथक् करनेवाले दो जीवोके द्वितीय समयमें विवक्षित पदके विरुद्ध पदमे जाकर अन्तरको प्राप्त हो तृतीय समयमें पुनः विवक्षित पदसे परिणत होनेपर एक समयप्रमाण अन्तर पाया जाता है । ___चूर्णिसू०-उत्कृष्ट अन्तर तीन पल्यसे अधिक एकसौ तिरेसठ सागर है ॥३४६॥
विशेषार्थ-इसका कारण यह है कि उक्त पद-परिणत जीवोके असंख्यातभागहानि और संख्यातभागहानियोके उत्कृष्टकालके साथ अन्तरको प्राप्त होकर पुनः विवक्षित पदसे परिणत होनेपर सूत्रोक्त उत्कृष्ट अन्तरकाल पाया जाता है।
चूर्णिसू० -मिथ्यात्वकर्मकी संख्यातभागवृद्धि और संख्यातगुणवृद्धि, इन स्थितिविभक्तियोका जघन्य अन्तरकाल एक समय है। संख्यातभागहानि और संख्यातगुणहानि, इन स्थितिविभक्तियोंका जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । इन सब स्थितिविभक्तियोका उत्कृष्ट अन्तरकाल असंख्यात पुगलपरिवर्तनप्रमाण है ।।३४७-३४८॥
चूर्णिसू०-मिथ्यात्वकर्मकी असंख्यातगुणहानिस्थितिविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । असंख्यातभागहानिस्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार शेप काँकी वृद्धि और हानि-सम्बन्धी अन्तरकालका भी इसी उपयुक्त बीजपदसे अनुमार्गण करना चाहिए १३४९-३५२।।