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कलाय पाहुड सुत्त
[ ३ स्थितिविभक्ति २१२. जहण्णहिदिसपिणयासो | २१३. मिच्छत्तजहण्णट्ठिदिसंतकम्मियस्स अणंताणुवंधीणं णत्थि । २१४. सेसाणं कम्पाणं विहत्ती किंजहण्णा अजहष्णा ? २१५, णियमा अजहण्णा २१६. जहण्णादो अजहण्णा [अ] संखेजगुणब्भहिया । २१७. मिच्छत्तेण णीदो सेसेहि वि अणुमग्गियव्यो । स्थितिविभक्तिका सन्निकर्ष भी इसी प्रकार है, केवल उसकी अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय कमसे लगाकर पल्योपमके असंख्यातवें भागसे कम वीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम तकके प्रमाणवाली होती है । हास्य और रति, इन दो प्रकृतियोकी स्थितिविभक्ति नियमसे अनुत्कृष्ट होती है। वह अपनी उत्कृष्ट स्थितिमेंसे एक समय कमसे लगाकर अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरोपम तक होती है। भय और जुगुप्सा प्रकृतिकी स्थितिविभक्ति ध्रुवबन्धी होनेके कारण नियमसे उत्कृष्ट होती है । भय और जुगुप्सा प्रकृतियोकी स्थितिविभक्तिको निरुद्धकर सन्निकर्प कहनेपर मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सम्यक्त्वप्रकृति, सोलह कषाय और तीनो वेदोकी सन्निकर्ष-प्ररूपणा अरतिशोकके समान है । हास्य, रति, अरति और शोक इन चार प्रकृतियोकी स्थितिविभक्तिसम्बन्धी सन्निकर्ष प्ररूपणा नपुंसकवेदकी सन्निकर्पप्ररूपणाके समान है। इनकी मात्र ही विशेषता जानना चाहिए।
चूर्णिसू० -अव जघन्य स्थितिविभक्ति-सम्बन्धी सन्निकर्प कहते है-मिथ्यात्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके अनन्तानुवन्धी चारो कपायोका सन्निकर्ष नहीं है, क्योकि, मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसत्त्व करनेके पूर्व ही अनन्तानुवन्धीकी विसंयोजना कर दी जानेसे उनके स्थितिसत्त्व पाये जानेका अभाव है ।।२१२-२१३।।
चूर्णिसू०-मिथ्यात्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिवाले जीवके अप्रत्याख्यानावरण आदि शेष समस्त मोहकर्मप्रकृतियोकी स्थितिविभक्ति क्या जघन्य होती है, अथवा अजघन्य होती है ? नियमसे अजघन्य होती है । क्योकि, ऊपर जाकर जघन्यस्थितिको प्राप्त होनेवाले जीवोके यहॉपर जघन्य स्थितिके पाये जानेका विरोध है। वह अजघन्य स्थिति अपनी जघन्य स्थितिसे असंख्यातगुणी अधिक प्रमाणवाली होती है ।।२१४-२१६।।
विशेषार्थ-इसका कारण यह है मिथ्यात्वकी दो समय-कालप्रमाण जघन्य स्थितिके अवशेप रह जानेपर सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण, तथा वारह कपाय और नव नोकपायोकी अन्तःकोड़ाकोड़ी सागरोपमप्रमाण अवशिष्ट स्थिति पाई जाती है ।
चूर्णिसू०-जिस प्रकार मिथ्यात्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिके साथ शंप प्रकृतियोकी जघन्य स्थितिका सन्निकर्ष निरूपण किया है, उसी प्रकार शेप कर्मप्रकृतियोंके साथ भी जघन्यसन्निकर्ष अन्वेपण करना चाहिये, क्योकि, उसमे कोई विशेपता नहीं है ॥२१७|| ..
अब चूर्णिकार इससे आगे स्थितिविभक्ति-सम्बन्धी अल्पबहुत्व अनुयोगद्वार कहनेक लिए प्रतिज्ञासूत्र कहते हैं
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