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कसाय पाहुड सुत्त
[ ३ स्थितिविभक्त
विहत्ती विसेसाहिया | २२८. सम्मत्तस्स उक्कस्सट्ठिदिविहत्ती विसेसाहिया । २२९. मिच्छत्तस्स उक्कस्सद्विदिविहत्ती विसेसाहिया । २३० सेसासु गदीसु णेदव्यो ।
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का प्रमाण एक अन्तर्मुहूर्त से कम तीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । सम्यक्त्व प्रकृतिको उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिसे विशेष अधिक है । विशेष अधिकता का प्रमाण एक उदयनिषेकमात्र है । मिथ्यात्वकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति सम्यक्त्वप्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिसे विशेष अधिक है । विशेप अधिकताका प्रमाण एक अन्तर्मुहूर्त है । जिस प्रकार नरकगतिमे मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका अल्पवहुत्वानुगम किया गया है, उसी प्रकार आपके अविरोधसे शेप गतियो मे भी अल्पबहुत्वानुगम करना चाहिए ॥ २१९-२३०॥
विशेषार्थ - चूर्णिसूत्रोमे केवल उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति-सम्बन्धी अल्पवहुत्वका निरूपण किया गया है । जघन्य स्थितिविभक्ति-सम्वन्धी अल्पबहुत्वका नहीं । वह उच्चारणावृत्तिके अनुसार इस प्रकार है-सम्यक्त्वप्रकृति, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, और लोभसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे कम होती है । इससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणित है । मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुवन्धी आदि बारह कषायोकी जघन्यस्थितिविभक्ति उपर्युक्तपद से संख्यातगुणित है । इससे मायासंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणित है । इससे मानसंज्वलनकी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणित है । इससे क्रोधसंज्वलन की जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणित है । इससे हास्य आदि छह नोकपायोकी जघन्य स्थिति - विभक्ति संख्यातगुणित होती है । किन्तु चिरन्तन व्याख्यानाचायोके मत से इसमे कुछ भेद है । जो कि इस प्रकार है- सम्यक्त्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति सबसे कम है । इससे सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुवन्धी चतुष्ककी जघन्य स्थितिविभक्ति संख्यातगुणित है । इससे पुरुषवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति असंख्यातगुणित है। इससे स्त्रीवेदकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इससे हास्य और रतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेदक जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इससे अरति और शोककी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इससे भय और जुगुप्साकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । इससे अप्रत्याख्यानावरणादि बारह कपायोकी जघन्य स्थितिविभक्ति विशेष अधिक हैं । इससे मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति अधिक है ।
इसी प्रकार चूर्णिसूत्रोमे जीव अल्पबहुत्वानुगमका भी निरूपण नहीं किया गया है । जो कि जयधवला टीकाके अनुसार इस प्रकार है । उनमें पहले उत्कृष्ट जीव अल्पबहुत्वको कहते हैं—सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दो प्रकृतियोंको छोड़कर शेष छब्बीस मोहप्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति करनेवाले जीव सबसे कम होते है | इनसे इन्हीं प्रकृतियां की अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्ति करनेवाले जीव अनन्तगुणित होते हैं । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन टोनीकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति करनेवाले जीव सबसे कम है | इनसे इन्ही अनुत्कृष्टस्थितिविभि