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गा० २२ ]
स्थितिविभक्ति-स्वामित्व-निरूपण
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[२१८. अप्पाचहुअं] २१९ सव्वत्थोवा णवणोकसायाणमुक्कस्सट्टिदिविहत्ती । २२०. सोलसकसायाण मुक्कस्सट्ठिदिविहत्ती विसेसाहिया । २२१ सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्सट्ठिदिविहत्ती विसेसाहिया । २२२. सम्मत्तस्स उक्कस्सडिदिविहत्ती विसेसाहिया । २२३ मिच्छत्तस्स उस्सट्टिदिविहत्ती विसेसाहिया ।
२२४. निरयगदी सव्वत्थोवा इत्थिवेद - पुरिसवेदाणमुकस्सट्ठिदिविहत्ती । २२५. सेसाणं णोकसायाणमुकस्सट्ठिदिविहत्ती विसेसाहिया । २२६. सोलसह कसायाणमुक्कस्सट्ठिदिविहत्ती विसेसाहिया । २२७. सम्मामिच्छत्तस्स उक्कस्स डिदि - चूर्णिसू० - अब स्थितिविभक्ति - सम्बन्धी अल्पबहुत्व कहते हैं ॥२१८॥
विशेषार्थ - अल्पबहुत्व दो प्रकारका है - स्थिति - अल्पबहुत्व और जीव- अल्पबहुत्व । जिसमे विवक्षित प्रकृतियो की स्थितिकाल सम्बन्धी अल्प और बहुत्व का निरूपण किया जाता है, उसे स्थिति - अल्पबहुत्वानुगम कहते है और जिसमे विवक्षित प्रकृतियो के सत्त्व आदिके धारक जीवोकी संख्या -सम्बन्धी हीनाधिकताका निरूपण किया जाता है, उसे जीव- अल्पबहुत्वानुगम कहते है । इन दोनोमेसे यहॉपर यतिवृषभाचार्यं स्थिति - अल्पबहुत्व कहते है ।
चूर्णिसू० - हास्यादि नव नोकपायोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति आगे कहे जानेवाले सर्वपदोकी अपेक्षा सबसे कम होती है । क्योकि, उसका प्रमाण बन्धावलीसे कम चालीस कोड़ाकोड़ी सागरोपम है । बन्धावलीसे कम कहनेका यह कारण है कि बन्धकालमे कपायोकी उत्कृष्ट स्थितिका नोकपायोमे संक्रमण नही होता है । अनन्तानुबन्धी आदि सोलह कपायो की उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति नव नोकपायोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिसे विशेष अधिक है। विशेष अधिकताका प्रमाण बन्धावलीकाल मात्र है । सम्यग्मिथ्यात्यकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति सोलह कपायोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिसे विशेष अधिक है । यहाँ विशेष अधिकताका प्रमाण अन्तमुहूर्त कम तीस कोडाकोड़ी सागरोपम है । सम्यक्त्व प्रकृति की उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति सम्यमिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिसे विशेष अधिक है। विशेष अधिकताका प्रमाण एक उदयनिपेक स्थितिमात्र है । मिथ्यात्वकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति सम्यक्त्वप्रकतिकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति से विशेष अधिक है । विशेप अधिकताका प्रमाण एक अन्तर्मुहूर्त है ।। २१९-२२३ ।। चूर्णिसू० - नरकगतिमे स्त्रीवेद और पुरुपवेदकी, उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति आगे कह जानेवाले सर्वपदोकी अपेक्षा सबसे कम है । इसका कारण यह है कि नरकगतिमे इन दोनो वेदोके उदयका अभाव है, अतएव इनके उदद्यनिपेकोका स्तिबुकसंक्रमणद्वारा नपुंसकवेदस्वरूपसे परिणमन हो जाता है। शेप सात नोकपायोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति स्त्री और पुरुपवेद की उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति विशेष अधिक है । विशेप अधिकताका प्रमाण एक उदयनिपेकमात्र है | सोलह कपायोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति सात नोकपायोंकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिसे विशेष अधिक है। विशेष अधिकताका प्रमाण बन्धावलीमात्र है । सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति सोलह कपायोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिसे विशेष अधिक है । विशेप अधिकता
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