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कसाय पाहुड सुत्त
[ ३ स्थितिविभक्ति
२५९. अणंताणुबंधिचउकस्स अवत्तव्यं जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । २६०. सम्मत्त - सम्मामिच्छत्ताणं भुजगार अवदि - अवत्तव्वकम्मंसिओ केवचिरं कालादो होदि ? २६१. जहण्णुकस्सेण एगसमओ ।
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उन्नीसवॉ समय प्राप्त होता है । इस प्रकार सोलह कषाय और नव नोकपाय- सम्बन्धी भुजाकारस्थितिविभक्तिके उन्नीस समयोकी प्ररूपणा जानना चाहिए। ऊपर जो अद्धाक्षय' पद प्रत्युक्त हुआ है उसका अर्थ है - अद्धा अर्थात् स्थितिबन्धके कालका क्षय । स्थिति बन्धका जघन्यकाल एक समय और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । विवक्षित स्थितिबन्धके कालका क्षय हो जानेपर तदनन्तर जीव उससे हीन या अधिक स्थितिका बन्ध करता है । क्रोधादि कषायरूप परिणामो के होनेको संक्लेश कहते है ।' जबतक एक - जातीय संक्लेश परिणाम रहेंगे, तबतक एकसा स्थितिबन्ध होगा, और एकजातीय संक्लेशक्षय होनेपर स्थितिबन्ध भी हीनाधिक होने लगेगा । यहाॅ यह बात ध्यानमे रखनेकी है कि अद्धक्षय के होनेपर संक्लेशक्षय होनेका नियम नहीं है । किसी जीवके अद्धाक्षयके साथ संक्लेशक्षय हो जाता है और किसी जीवके अद्धाक्षयके पश्चात् भी संक्लेशक्षय होता है ।
चूर्णिसू० - अनन्तानुबन्धी कपायचतुष्ककी अवक्तव्यविभक्तिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है ॥ २५९ ॥
विशेषार्थ - इसका कारण यह है कि अनन्तानुबन्धी कषायकी सत्ता से रहित सम्यग्दृष्टि जीवके मिथ्यात्व अथवा सासादन गुणस्थानको प्राप्त होनेपर उसके प्रथम समय मे ही अनन्तानुबन्धी कपायके स्थितिसत्त्वकी उत्पत्ति हो जाती है ।
चूर्णिसू० - सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी भुजाकार, अवस्थित और अवक्तव्यविभक्तिका कितना काल है ? जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय है ।। २६०-२६१।। विशेषार्थ - इसका कारण यह है कि सम्यक्त्वप्रकृतिकी सत्तावाले मिथ्यादृष्टि जीवके सम्यक्त्वप्रकृति के सत्त्वके ऊपर दो समय अधिक आदिके रूपसे मिथ्यात्वकी स्थितिको बॉधकर पुनः सम्यक्त्वके ग्रहण करनेपर प्रथम समयमे उक्त प्रकृतियोकी भुजाकारविभक्ति होती है । इसी प्रकार एक समय अधिक मिथ्यात्वकी स्थितिको वॉधकर सम्यक्त्व ग्रहणके प्रथम समयमे अवस्थितविभक्तिका एक समयमात्र काल पाया जाता है, क्योकि, दूसरे समयमे अल्पतरविभक्तिकी उत्पत्ति हो जाती है । तथा सम्यक्त्वप्रकृतिकी सत्ता से रहित मिथ्यादृष्टि जीवके सम्यक्त्वके ग्रहण करनेपर एक समयमात्र अवक्तव्यविभक्ति होती है, अधिक समय नही, क्योकि दूसरे समयमे तो अल्पतरविभक्ति आ जाती है । इसी प्रकार सम्यमिथ्यात्वकी भुजाकारादि विभक्तियोके कालको जानना चाहिए ।
१ का अद्धा णाम १ ट्ठिदिवधकालो । कि तस्स प्रमाण १ जहणेण एगसमओ । उपमेण अतोमुहुत्त । एदिस्से अद्धाए खओ विणासो अद्धाक्खओ णाम । जयध०
२ को मकिलेसो नाम ? कोहमाणमायालोहपरिणामविशेषो । जयध०