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कसाय पाहुड सुत्त
[३ स्थितिविभक्ति पदाणं णत्थि अंतरं । २९७. णवरि अणंताणुवंधीणं अवत्तव्यढिदिविहत्तियंतरं जहण्णेण एगसमओ। २९८. उकस्सेण चउचीसमहोरत्ते सादिरेगे।
२९९. सण्णियासो । ३००. मिच्छत्तस्स जो भुजगारकम्मंसिओ सो सम्मत्तस्स सिया अप्पदरकम्मंसिओ सिया अकम्मंसिओ। ३०१. एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि । ३०२. सेसाणं णेदव्यो*। कार, अल्पतर और अवस्थित स्थितिविभक्तिवाले जीवोका सर्वकाल अस्तित्व सम्भव है। केवल अनन्तानुवन्धी चारो कपायोकी अवक्तव्यस्थितिविभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ अधिक चौवीस अहोरात्र है। क्योकि, सम्यक्त्वको प्राप्त होनेवाले जीवोके अन्तर-कालके साथ मिथ्यात्वको प्राप्त होनेवाले जीवोके अन्तर-कालकी समानता है ॥२८७-२९८॥
चूर्णिसू०-अव भुजाकार आदि विभक्तियोंके सन्निकर्षका निरूपण करते हैं जो जीव मिथ्यात्वकर्मकी भुजाकार विभक्तिवाला होता है, वह सम्यक्त्वप्रकृतिकी कदाचित् अल्पतरविभक्तिवाला होता है और कदाचित् अकर्माशिक अर्थात् सत्ता-रहित होता है। इसका कारण यह है कि यदि सम्यक्त्वप्रकृतिकी सत्ता हो, तो मिथ्यात्वकी भुजाकारविभक्तिवाले जीवमे सम्यक्त्वप्रकृतिकी नियमसे अल्पतरस्थितिविभक्ति होती है; अन्यथा नहीं होती है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिका भी सन्निकर्प जानना चाहिए । अर्थात् मिथ्यात्वकी भुजाकारविभक्तिवाले जीवके यदि सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्ता है तो नियमसे अल्पतरावेभक्ति होगी, अन्यथा नहीं । इसी प्रकार शेप कर्मोंका भी सन्निकर्प जान लेना चाहिए ॥२९९-३०२॥
विशेपार्थ-चूर्णिसूत्रमे शेप कर्मोंके जिस सन्निकर्षको जान लेनेकी सूचना की गई है, वह इस प्रकार है-जो जीव मिथ्यात्वकी भुजाकारविभक्तिवाला है, वह सोलहो कपायों और नवो नोकपायोकी कदाचित् भुजाकारविभक्तिवाला है, कदाचित् अल्पतरविभक्तिवाला है और कदाचित् अवस्थितविभक्तिवाला है। इसी प्रकार मिथ्यात्वकी अवस्थितविभक्तिका भी सन्निकर्प जानना चाहिए। जो मिथ्यात्वकी अल्पतरविभक्तिवाला है, उसके सम्यक्त्वप्रकृतिका स्थितिसत्त्व कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं भी होता है । यदि होता है तो कदाचित् अल्पतरविभक्तिवाला, कदाचित् भुजाकारविभक्तिवाला, कदाचित अवस्थितविभक्तिवाला
और कदाचित् अवक्तव्यविभक्तिवाला होता है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वका भी सन्निकर्ष जानना चाहिए। वह अप्रत्याख्यानावरणादि बारह कपाय और नव नोकपायोकी कदाचित भुजाकारविभक्तिवाला होता है, कदाचित् अल्पतरविभक्तिवाला होता है और कदाचित अवस्थित विभक्तिवाला होता है । इसी प्रकार अनन्तानुबन्धीकयाय-चतुष्कका भी सन्निकर्ष जानना चाहिए । केवल विशेषता यह है कि वह कदाचिन अवक्तव्यविभक्तिवाला होता है
ताम्रपत्रवाली प्रतिमें यह चूर्णिसूत्र मुद्रित नहीं है, किन्तु इसकी टीकाको सूत्र बना दिया गा ६। जो कि इस प्रकार है-'सेसाणं कम्माणं राणिमा जाणिदण णेदवो'। (देखो पृष्ठ १२३ पति ६)