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गा० २२ ]
स्थितिविभक्ति-काल
ल-निरूपण
२४७, एत्तो एगजीवेण कालो । २४८. मिच्छत्तस्स भुजगारकम्मंसिओ केवचिरं कालादो होदि ९ २४९. जहणेण एगसमओ । २५०. उक्कस्सेण चत्तारि समया ( ४ ) । २५१. अप्पदरकम्मंसिओ केवचिरं कालादो होदि ९ २५२. भुजाकार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्य स्थितिविभक्तियोके स्वामित्वको जानना चाहिए ॥ २४६ ॥
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चूर्णिसू० ० - अब इससे आगे एक जीवकी अपेक्षा भुजाकार, अल्पतर, अवस्थित और अवक्तव्य, इन चारो विभक्तियोके, कालका वर्णन किया जाता है। मिथ्यात्व कर्मकी सुजाकार विभक्तिवाले जीवका कितना काल है ? जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार (४) समय है ।। २४७-२५० ।।
विशेषार्थ - मिथ्यात्वकी भुजाकारविभक्तिका जघन्य काल एक समय है, क्योकि, मिथ्यात्वकी विवक्षित स्थितिको एक समय आगे बढ़ाकर बॉधनेपर मिथ्यात्वकर्म की भुजाकारस्थितिविभक्तिका एक समयप्रमाण जघन्य काल पाया जाता है । मिथ्यात्वकर्म की भुजाकारविभक्तिका उत्कृष्टकाल चार समय है । वे चार समय इस प्रकार सम्भव है - अद्धाक्षसे अर्थात् स्थितिबन्धके कालका क्षय हो जानेसे स्थितिबन्धके बढ़नेपर भुजाकारविभक्तिका प्रथम समय प्राप्त होता है । पुनः चरम समयमे संक्ल ेश-क्षयसे अर्थात् स्थितिबन्धके योग्य विवक्षित अध्यवसायस्थानके अवस्थानका काल समाप्त हो जानेसे उस समय एक समय अधिक, दो समय अधिक आदिके क्रमसे लगाकर बढ़ते हुए संख्यात सागरोपम तक की स्थिति बाँधने योग्य परिणाम उत्पन्न होते है, उनसे यथायोग्य स्थितिको बॉधनेपर भुजाकारविभक्तिका द्वितीय समय उपलब्ध होता है । तृतीय समयमे मरण करके विग्रहगतिके द्वारा पंचेन्द्रियोमे उत्पन्न होने के प्रथम समयमे असंज्ञी जीवोकी सहस्र सागरोपम स्थितिको बॉधनेपर उसी जीवके भुजाकारविभक्तिका तृतीय समय होता है । पुनः चतुर्थ समयमे शरीरग्रहण करके अन्तःकोडाकोड़ी सागरोपमप्रमाण संज्ञी जीवोकी स्थितिको वॉधनेपर उसी जीवके भुजाकारविभक्तिका चतुर्थ समय होता है । कहनेका अभिप्राय यह है कि जब कोई एक एकेन्द्रिय जीव पहले समय में अद्धा क्षयसे स्थितिको बढ़ाकर बाँधता है, दूसरे समय मे संकृशक्षयसे स्थितिको बढ़ाकर बाँधता है, तीसरे समय में मरणकर और एक विग्रहसे संज्ञी जीवोमे उत्पन्न होकर असंज्ञी जीवोके योग्य स्थितिको बढाकर बाँधता है और चौथे समयमे शरीरको ग्रहण करके संज्ञी जीवोके योग्य स्थिति बढ़ाकर बाँधता है, तब उस जीवके भुजाकारविभक्तिका उत्कृष्टकाल चार समयप्रमाण प्राप्त होता है । इस प्रकार मिध्यात्वकर्म की भुजाकारविभक्तिका उत्कृष्टकाल चार समय ही है । आगे जहाँ भी भुजाकारवन्ध कहा जावे, वहाँ सर्वत्र यही अर्थ जानना चाहिए ।
चूर्णिसू० - मिध्यात्वकर्मकी अल्पतरविभक्तिका कितना काल है ? जघन्यकाल एक