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गा० २२ ]
स्थितिविभक्ति-सन्निकर्ष-निरूपण
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१८९. सदस्स उक्कस्सट्ठिदिवित्तियस्स मिच्छत्तस्स द्विदिविहत्ती किनकस्सा अणुक्कस्सा ? १९०. उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा । १९१. उक्कस्सादो अणुक्कस्सा वह इस प्रकार है - पुरुषवेदको निरुद्ध करके शेप कर्मप्रकृतियोके साथ सन्निकर्ष प्ररूपणामे कोई विशेषता नहीं है, क्योकि, वह समस्त प्ररूपणा स्त्रीवेदकी सन्निकर्ष प्ररूपणाके समान है । हास्य और रति, इन दो प्रकृतियोको निरुद्ध करके सन्निकर्ष - प्ररूपणा करनेपर मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कपाय, भय और जुगुप्सा, इन प्रकृतियोके सन्निकर्ष प्ररूपणाओमे भी स्त्रीवेदी सन्निकर्प - प्ररूपणासे कोई विशेषता नहीं है । किन्तु स्त्रीवेद और पुरुपवेदके सन्निकर्ष मे कुछ विशेषता है, जो कि इस प्रकार है- हास्य और रति, इन दो प्रकृतियोकी उत्कृष्ट स्थितिके होनेपर स्त्री और पुरुपद्येदकी स्थिति उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी होती है । उत्कृष्ट स्थिति होनेका कारण तो यह है कि कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति के संक्रमित होनेपर हास्य, रति, स्त्रीवेद और पुरुपवेद, इन चारो ही कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति पाई जाती है । अनुत्कृष्ट स्थ होनेका कारण यह है कि उत्कृष्ट स्थिति वन्धकर प्रतिनिवृत्त होनेके समयमे हास्य और रति, इन दोनोके बँधते हुए भी स्त्रीवेद और पुरुपवेद, इन दोनो के वन्धका अभाव हो जानेसे उनकी उत्कृष्ट स्थिति नही पाई जाती है । उक्त प्रकृतियोकी यदि अनुत्कृष्ट स्थिति होती है तो नियमसे उत्कृष्ट स्थितिमेसे एक अन्तर्मुहूर्त कमसे लगाकर अन्तः फोड़ाकोड़ी सागरोपम तकके प्रमाणवाली होती है । स्त्रीवेदके निरुद्ध करनेपर नपुंसकवेदकी नियमसे अनुत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है, क्योकि, स्त्रीवेदके बन्धकालमे नपुंसकवेदके वन्धका अभाव है । किन्तु हास्य और रति प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके निरुद्ध करनेपर नपुंसक वेदकी स्थिति कदाचित् उत्कृष्ट होती है, क्योकि, हास्य और रतिके बन्धकालमे भी नपुंसकवेदका बन्ध पाया जाता है । कदाचित् अनुत्कृष्ट होती है, क्योकि, कभी बन्धका अभाव होनेसे उसके एक समय कम आदिके रूपसे अनुत्कृष्ट स्थिति - सम्बन्धी विकल्प पाये जाते है । स्त्रीवेदकी उत्कृष्ट स्थिति के साथ अरति और शोक, इन दोनो प्रकृतियोकी कदाचित् उत्कृष्ट स्थिति होती है, क्योकि स्त्रीवेदके साथ इन दोनो प्रकृतियोके बँधने के प्रति कोई विरोध नही है । कदाचित् अनुत्कृष्ट होती है, क्योकि उत्कृष्ट बन्धके अनन्तर प्रतिनिवृत्त होने के समयमे जब हास्य और रति, इन दोनोका बन्ध होने लगता है, तब अरति और शोक प्रकृतिके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध न होनेसे अनुत्कृष्ट स्थिति सम्बन्धी विकल्प पाये जाते हैं । किन्तु हास्य और रतिप्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिके निरुद्ध करनेपर अरति और शोक प्रकृति की स्थिति नियम से अनुत्कृष्ट होती है, क्योकि प्रतिनिवृत्त होने के समय मे हास्य और रतिबन्ध होने पर उनकी प्रतिपक्षी अरति और शोक प्रकृतिका बन्ध नहीं होता है । इस प्रकारकी यह विशेषता जानना चाहिए ।
चूर्णिसू० - नपुंसकवेदकी उत्कृष्ट स्थिति-विभक्ति करनेवाले जीवके मिध्यात्वकी स्थिति - विभक्ति क्या उत्कृष्ट होती है, अथवा अनुत्कृष्ट होती है ? उत्कृष्ट भी होती है और अनुत्कृष्ट भी होती है । इसका कारण यह है कि नपुंसकवेद की उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिके होनेपर यदि