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कसाय पाहुड सुत्त
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६३. एवं सेसासु गदी अणुमग्गिदव्वं ।
[६४. कालो ।] ६५ मिच्छत्तस्स उक्कस्सट्ठिदिसंतकम्पिओ केवचिरं कालादो होदि १ ६६. जहणेण एगसमओ । ६७. उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं ।
[ ३ स्थितिविभक्ति
कोड़ाकोड़ी सागरप्रमाण स्थितिवन्ध करनेकी शक्तिका अभाव रहता है । इस प्रकार विग्रहगतिके दोनो समयोमे वर्तमान जीवके मिथ्यात्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है । इस ही जीवके अप्रत्याख्यानावरणादि वारह कषाय तथा भय और जुगुप्सा इन दो नोकपायोकी भी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है । विशेषता केवल इतनी है कि जहाँ उसके मिथ्यात्वकी जवन्य स्थितिका वन्ध पल्योपमके संख्यातवे भागसे हीन सहस्र सागरोपम होता था, वहाँ उसी जीवके इन चौदह प्रकृतियोका स्थितिवन्ध सागरोपमसहस्रके पल्योपमके संख्यात भागसे कम सात भागोसेसे चार भाग - प्रमाण होता है । भय और जुगुप्साको छोड़कर शेष सात नोकपायोकी जघन्य स्थितिविभक्तिका स्वामित्व भी इसी प्रकार जानना चाहिए | भेद केवल यह है कि हास्यादि जिन प्रकृतियोका वन्ध नरकगतिमे नही होता है, उनकी वन्ध-व्युच्छित्ति असंज्ञी पंचेन्द्रिय-भवके अन्तिम समयमे ही हो जाती है और उनकी प्रतिपक्षी अरति आदि प्रकृतियाँ नरकगतिमे उत्पन्न होनेके प्रथम समयसे बँधने लगती है । अतएव अपनी-अपनी प्रतिपक्षी प्रकृतियो के वन्धकाल के अन्तिम समयमे, उन प्रकृतियोकी जघन्य स्थितिविभक्तिका स्वामित्व जानना चाहिए ।
चूर्णिसू० - इसी प्रकार शेष गतियोमे स्वामित्वका अनुमार्गण करना चाहिए ॥ ६३॥ विशेषार्थ - जिस प्रकार ऊपर नरकगतिमे सर्व प्रकृतियोकी जघन्य स्थितिविभक्तिके स्वामित्वका निरूपण किया है, उसी प्रकारसे शेष तीनो गतियो में मोहकर्मकी सर्वप्रकृतियोकी जघन्य स्थितिविभक्तिके स्वामित्वका अन्वेषण करना चाहिए । तथा इस सूत्र के देशामर्शक होनेसे इन्द्रिय आदि शेप मार्गणाओमे भी उसी प्रकारसे जघन्य स्थितिविभक्तिका निर्णय करना चाहिए । ऐसी सूचना चूर्णिकारने की है, अतएव विशेप जिज्ञासु जन महाबन्धके स्थितिबन्धप्रकरणमे और इस सूत्र पर उच्चारणाचार्य द्वारा की गई विस्तृत व्याख्याको जयधवला टीकामे देखे |
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चूर्णिसू० - [अब स्थितिविभक्तिके कालका निर्णय करते हैं - ] मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका सत्कर्मिक - बंध करके सत्त्व स्थापित करनेवाला जीव कितने काल तक होता है ? अर्थात् मिथ्यात्वक उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका कितना काल है ? जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ६४-६७॥
विशेषार्थ - जब कोई जीव एक समयकालमात्र मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिका बंध करके दूसरे समय मे उत्कृष्ट स्थितिका बंध नहीं करता है, उस समय उस जीवके मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका काल एक समयप्रमाण पाया जाता है । मिथ्यात्वप्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिके बॉधनेका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त - प्रमाण है । इसका कारण यह है कि उत्कृष्ट दाह या संकुशको प्राप्त जीव ही मिध्यात्वप्रकृतिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध करता है और उत्कृष्ट
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