________________
फसाय पाहुड सुत्त
[३ स्थितिविभक्ति ३०.णवणोकसायाणमुक्कस्सहिदिविहत्ती कस्स १३१.कसायाणमुक्कस्सद्विदिं बंधिदण आवलियादीदस्स । ३२. एत्तो जहण्णयं । ३३. मिच्छत्तस्स जहण्णहिदिविहत्ती कस्स ? ३४. मणुसस्स वा मणुसिणीए वा खविजमाणयमावलियपविहं जाधे दुसमयकालहिदिगं सेसं ताधे । ३५. सम्मत्तस्स जहण्णद्विदिविहत्ती कस्स ? ३६. चरिमसमय-अक्खीणदंसणमोहणीयस्स । ३७. सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णद्विदिविहत्ती कस्स ? ३८. सम्मामिच्छत्तं खविजमाणं वा उव्वेल्लिजमाणं वा जस्स दुसमयकालट्ठिदियं सेसं तस्स खतस्स अन्तर्मुहूर्तकाल तक तत्प्रायोग्य विशुद्धिसे अवस्थित हो स्थितिघातको न करके सर्वजघन्य अन्तमुहूर्तकालसे वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त होता है, उसके प्रथम समयमे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिके सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यन्मिथ्यात्वमे संक्रमित होनेपर सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है, ऐसा जानना चाहिए ।
चूर्णिसू०-हास्य आदि नव नोकपायोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति किसके होती है ? सोलह कपायोकी उत्कृष्ट स्थितिको वॉधकर एक आवलीप्रमाण काल व्यतीत करनेवाले जीवके नव नोकषायोकी उत्कृष्ट स्थितिविभक्ति होती है। इसका कारण यह है कि अचलावलीमात्र कालतक बॉधी हुई सोलह कपायोकी उत्कृष्ट स्थितिका नोकषायोमे संक्रम नही होता है।।३०-३१॥
चूर्णि सू०-अव इससे आगे जघन्य स्थितिविभक्तिके स्वामित्वका निरूपण करते हैं-मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? उदयावलीमे प्रविष्ट एवं क्षपण किया जानेवाला मिथ्यात्व जव दो समय-प्रमाणकालकी स्थितिवाला होकर शेप रहे, तब दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करनेवाले मनुष्य अथवा मनुष्यनीके मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है ॥३२-३४॥
विशेपार्थ-यहाँ मनुष्यपद सामान्यरूपसे कहा गया है, अतएव उससे भावपुरुपवेदी और भावनपुंसकवेदी मनुष्योका ग्रहण करना चाहिए। इसी प्रकार मनुष्यनीपदसे भी भावस्त्रीवेदी मनुष्यका ग्रहण करना चाहिए, क्योकि, द्रव्यसे पुरुयवेटी जीवके ही दर्शनमोहनीयकर्मका क्षपण माना गया है । सूत्रमे जो 'आवलीप्रविष्ट' पद दिया है, उसका आशय यह है कि मिथ्यात्वकी अन्तिम फालिके पररूपसे संक्रान्त हो जानेपर उदयावलीमे प्रविष्ट निपेक ही पाये जाते है । उनके अधःस्थितिगलनसे गलते हुए जब दो समयको कालस्थितिवाला मिथ्यात्वका निपेक शेप रहता है, तब मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है ।
चूर्णिसू०-सम्यक्त्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनो प्रकृतियोका क्षय करके जो सम्यक्त्वप्रकृतिके क्षय करनेके लिए तैयार है और जिसके दर्शनमोहके क्षय होनेमे एक समयमात्र शेप है, ऐसे चरमसमयवर्ती अक्षीण दर्शनमोहनीयकर्मवाले जीवके सम्यक्त्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है । सम्यन्मिथ्यात्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति किसके होती है ? क्षपण किया जानेवाला, अथवा उद्वेलना किया जानेवाला सम्बन्मिथ्यात्वकर्म जब दो समयमात्र काल-स्थितिवाला