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कसाय पाहुड सुत्त
केवलदंसण- गाणे कसायसुकेकए पुधत्ते य । पडिवादुवसातय खवेंतए संपराए य ॥ १६ ॥
[ १ पेजदोस विहत्ती
अधिक है । श्रोत्रेन्द्रियसम्बन्धी अवग्रहज्ञानके जघन्यकालसे प्राणेन्द्रियसम्बन्धी अवग्रहज्ञानका जघन्यकाल विशेष अधिक है । प्राणेन्द्रियसम्बन्धी अवग्रहज्ञानके जघन्यकाल से जिह्वेन्द्रियसम्बन्धी अवग्रहज्ञानका जघन्यकाल विशेष अधिक है । जिह्वेन्द्रियसम्बन्धी अवग्रहज्ञान के जघन्यकाल से मनोयोगका जघन्यकाल विशेप अधिक है । मनोयोगके जघन्यकालसे वचनयोगका जघन्यकाल विशेप अधिक है । वचनयोगके जघन्यकालसे काययोगका जवन्यकाल विशेष अधिक है । काययोगके जघन्यकाल से स्पर्शनेन्द्रियसम्बन्धी अवग्रहज्ञानका जघन्यकाल विशेष अधिक है । स्पर्शनेन्द्रियसम्बन्धी अवग्रहज्ञानके जघन्यकालसे अवायज्ञानका जघन्यकाल विशेष अधिक है । अवायज्ञानके जघन्यकालसे ईहाज्ञानका जवन्यकाल विशेष अधिक है । ईहाज्ञानके जघन्यकालसे श्रुतज्ञानका जघन्यकाल विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानके जघन्य - कालसे उच्लासका जघन्यकाल विशेष अधिक है ।
यहॉपर अवाय और ईहाज्ञानके जघन्यकालका सामान्य निर्देश होनेसे स्पर्शन, रसना आदि किसी भी इन्द्रियसम्बन्धी अवाय और ईहाज्ञानका ग्रहण किया गया समझना चाहिए | धारणाज्ञानका पृथक् निर्देश न होनेका कारण यह है कि उसका अवायन्ज्ञानमे ही अन्तर्भाव कर लिया गया है, क्योकि, दृढ़ात्मक अवायज्ञानको ही धारणा कहते हैं । इसी - लिए उसका पृथक् निर्देश नहीं किया गया ।
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तद्भवस्थ- केवलीके केवलदर्शन, केवलज्ञान और सकषाय जीवके शुक्ललेश्या, इन तीनोंका; एकत्ववितर्कअवीचारशुक्लध्यान, पृथक्त्ववितर्कवीचारशुक्कुध्यान, प्रतिपाती उपशामक, आरोहक उपशामक और क्षपक सूक्ष्मसाम्पराय संयत, इन सबका जघन्यकाल क्रमशः उत्तरोत्तर विशेष विशेष अधिक है ||१६||
विशेषार्थ - तद्भवस्थ - केवलीके केवलदर्शन, केवलज्ञान और सकपाय जीवकी शुक्ललेश्या, इन तीनोका जघन्य काल परस्पर सदृश होते हुए भी उच्छ्वासके जघन्यकाल से विशेष अधिक है । इससे एकत्ववितर्क अवीचारशुक्लध्यानका जघन्य काल विशेष अधिक है । एकत्ववितर्क अवीचारशुक्लध्यानके जघन्य कालसे पृथक्त्वत्रितर्कवीचारशुक्रुध्यानका जघन्य काल विशेष अधिक है । पृथक्त्ववितर्कवीचारशुक्लध्यानके जघन्य कालकी अपेक्षा प्रतिपातीउपशान्तकपाय-गुणस्थान से गिरनेवाले - सूक्ष्मसाम्परायसयतका जघन्य काल विशेष अधिक है । प्रतिपाती सूक्ष्मसाम्परायसंयत के जघन्यकाल से उपशान्तकपाय - गुणस्थानमे चढ़नेवाले आरोहक सूक्ष्मसाम्परायसंयतका जघन्य काल विशेष अधिक है । आरोहक - उपशामक सूक्ष्मसाम्परायसंयतके जघन्य कालसे क्षपक श्रेणीवाले सूक्ष्मसाम्परायसंयतका जघन्य काल विशेप अधिक है । यहॉपर तद्भवस्थकेवलीसे अन्तःकृतकेवलीका अभिप्राय समझना चाहिए, क्योंकि,