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पा० २२) प्रकृतिस्थानविभक्ति-समुत्कीर्तना-निरूपण
३९. पयडिहाणविहत्तीए इमाणि अणियोगद्दाराणि । तं जहा--एगजीवेण सामित्तं कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ परिमाणं खेत्तं फोसणं कालो अंतरं अप्पाबहुअं भुजगारो पदणिक्खेवो पड्डि त्ति । ४०. पयडिहाणविहत्तीए पुव्वं गमणिज्जा हाणसमुक्तित्तणा। ४१. अस्थि अट्ठावीसाए सत्तावीसाए छव्वीसाए चउवीसाए तेवीसाए वावीसाए एकवीसाए तेरसण्हं पारसण्हं एक्कारसण्हं पंचण्डं चदुहं तिण्हं दोण्हं एकिस्से च (१५)। एदे ओघेण । चाहिए । इन अनुयोगद्वारोका विस्तृत वर्णन जयधवला टीकासे जानना चहिए । यहाँ केवल इन अनुयोगद्वारोका दिशा-परिज्ञानार्थ संक्षिप्त स्वरूप दिखाया गया है। इस प्रकार इन ग्यारह अनुयोगद्वारोके वर्णन समाप्त होनेपर एकैकउत्तरप्रकृतिविभक्तिनामक प्रकृतिविभक्तिका प्रथम भेद समाप्त हुआ।
चूर्णिसू०-प्रकृतिस्थानविभक्तिमे ये अनुयोगद्वार है। जैसे-एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, काल और अन्तर, नानाजीवोकी अपेक्षा भंगविचय, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, अल्पबहुत्व, भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धि ॥३९॥
विशेषार्थ-प्रकृतिस्थान तीन प्रकारके होते है-बंधस्थान, उदयस्थान और सत्त्वस्थान । इनमेंसे बंधस्थानोंका वर्णन आगे कहे जानेवाले बंधक नामके अर्थाधिकारमे किया जायगा। उदयस्थानोका वर्णन आगे कहे जानेवाले वेदक नामके अर्थाधिकारमे किया जायगा। अतएव पारिशेपन्यायसे यहॉपर प्रकृतमे प्रकृतिसत्त्वस्थान विवक्षित है जिनका वर्णन उक्त तेरह अनुयोग द्वारोसे किया जायगा।
चूर्णिमु०-प्रकृतिस्थानविभक्तिमे सत्त्वस्थानोकी समुत्कीर्तना सर्व-प्रथम जानना चाहिए॥४०॥
• विशेषार्थ-मोहकर्मके अट्ठाईस, सत्ताईस आदि सत्त्वस्थानोके कथन करनेको स्थानसमुत्कीर्तना कहते है । इसके परिबान हुए विना शेप अनुयोगद्वारोका ज्ञान भी भली-भाँति नहीं हो सकता है। अतएव सबसे पहले उसीका वर्णन करते है।
चूर्णिसू०-मोहनीयकर्मके अट्ठाईस, सत्ताईस, छब्बीस, तेईस, बाईस, इक्कीस, तेरह, वारह, ग्यारह, पॉच, चार, तीन, दो और एक प्रकृतिरूप (१५) पन्द्रह सत्त्वस्थान ओघकी अपेक्षा होते है ॥४१॥
विशेषार्थ-मोहनीयकर्मके मूलमे दो भेद हैं :-दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय । दर्शनमोहनीयके तीन भेद हैं :-मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृति । चारित्रमोहनीयके भी दो भेद हैं :-कपायवेदनीय और नोकपायवेदनीय । कपायवेदनीयके १६ भेद है:अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ, और संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ । नोकपायवेदनीयके ए भेद है :-हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुपबंद,