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गा० २२ ]
शेष- अनुयोगद्वार - संसूचन
१२९. एवं सव्वाणि अणिओगद्दाराणि णेदव्वाणि । १३०. पदणिक्खेवे बड्डी च अणुमग्गिदाए समत्ता पयडिविहत्ती |
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सम्यक्त्वको प्राप्त कर और अनन्त संसारको छेदकर उसे अर्धपुग परिवर्तनमात्र किया । पुनः सम्यक्त्वका काल समाप्त होते ही मिथ्यात्वमे जाकर और सर्वजघन्य उद्वेलनकालके द्वारा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति की उद्वेलनाकर अट्ठाईस विभक्ति - स्थान से सत्ताईस और सत्ताईससे छब्बीस, इस प्रकार अल्पतरविभक्ति करता हुआ छब्बीस प्रकृतिरूप अवस्थित - विभक्तिको प्राप्त हुआ । पुनः उद्वेलनाकालसम्बन्धी पल्योपमके असंख्यातवें भागसे कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन तक उसी अवस्थित छब्बीस विभक्ति के साथ परिभ्रमणकर संसार के अन्तमुहूर्त मात्र शेष रहनेपर सम्यक्त्वको ग्रहणकर छब्बीस विभक्ति-स्थान से अट्ठाईस विभक्ति - स्थानको प्राप्तकर भुजाकारविभक्तिको करनेवाला हो गया। इस प्रकार पल्य के असंख्यातवें भाग से कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण सादि-सान्त अवस्थितविभक्तिका उत्कृष्ट काल सिद्ध होता है । चूर्णिसु० - इसी प्रकार कालानुयोगद्वारके समान ही शेप समस्त अनुयोगद्वारोकी प्ररूपणा कर लेना चाहिए ॥ १२९ ॥
विशेषार्थ - चूर्णिकारने सुगम समझकर शेप अनुयोगद्वारोका निरूपण नही किया । विशेष जिज्ञासुओको जयधवला टीकाके अन्तर्गत उच्चारणावृत्ति देखना चाहिए ।
चूर्णिसू० - पदनिक्षेप और वृद्धि नामक अनुयोगद्वारोके यहाँ अनुमार्गण अर्थात् अन्वेषण करनेपर प्रकृतिविभक्ति नामक अर्थाधिकार समाप्त होता है ॥ १३० ॥
विशेषार्थ - ऊपर वर्णन किये गये अनुयोगद्वारोका जघन्य और उत्कृष्ट पदोके द्वारा निक्षेप अर्थात् निश्चय करने को पढ़निक्षेप कहते हैं । इस पदनिक्षेप अधिकारका समुत्कीर्तना, स्वामित्व और अल्पबहुत्व, इन तीन अनुयोगांद्वारा वर्णन किया गया है । वृद्धि, हानि और अवस्थान, इन तीनोके वर्णन करनेवाले अधिकारको वृद्धिनामक अर्थाधिकार कहते है । इसका वर्णन समुत्कीर्तना, स्वामित्व, एक जीवकी अपेक्षा काल, अन्तर, नानाजीवोकी अपेक्षा भंगविचयानुगम, भागाभागानुगम, परिमाणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, भावानुगम और अल्पबहुत्वानुगम, इन तेरह अनुयोगद्वारोसे किया गया है । इन अनुयोगद्वारोसे दोनो अधिकारोके वर्णन करनेपर प्रकृतिविभक्तिनामक अर्थाधिकार समाप्त होता है । यतिवृषभाचार्यने उक्त अनुयोगद्वारोकी सूचना इस सूत्रसे की है । विशेप जिज्ञासुओको जयधवला टीका देखना चाहिए ।
इस प्रकार प्रकृतिविभक्ति समाप्त हुई ।
को पदणिक्खेवो णाम ? जहण्णुवत्सपदविसयणिच्छए खिर्वाद पाढेदि ति पदणिक्खेवो णाम । भुजगारविसेसो पदणिक्खेवो, जणुस्सर्वाड्डि-हाणिपरूवणादो । पटणिक्लेवविसेसो वट्टी, वनि-हाणीण भेदपरूवणादो । जयध