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गा० २२ ]
स्थितिविभक्ति-प्रमाणानुगम-निरूपण १७ सम्मत्त-लोहसंजलण-इत्थि-णवंसयवेदाणं जहण्णद्विदि विहत्ती एगा हिदी एगसमयकालट्ठिदिया । १८. कोहसंजलणस्स जहण्णहिदिविहत्ती वे मासा अंतोमुहुत्तूणा। अन्तिम समयमे पतित होती है, ऐसा विशेप जानना चाहिए । सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना होनेपर भी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है, क्योकि, वहॉपर भी दो समयकालवाली एक निपेक-स्थिति पाई जाती है।
चूर्णिसू०-सम्यक्त्वप्रकृति, लोभसंज्वलन, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद, इन कर्मप्रकृतियोकी स्थितिविभक्तिका जघन्यकाल एक समय-प्रमाण कालस्थितिवाली एक स्थिति है ॥१७॥
विशेषार्थ-सूत्रोक्त अर्थके स्पष्टीकरणके लिए यहॉपर सम्यक्त्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्तिके कालको कहते है-सम्यग्मिथ्यात्वकी चरमफालीको सम्यक्त्वप्रकृतिमे संक्रमणकर देनेपर उस समय उसका स्थिति-सत्त्व आठ वर्पप्रमाण होता है । पुनः इस आठ वर्पप्रमाण स्थिति-सत्त्वका अन्तमुहूर्तमात्र स्थितिकांडकोके प्रमाणसे घात करता हुआ और सम्यक्त्वप्रकृतिका प्रतिसमय अपवर्तन करता हुआ वह संख्यात हजार स्थितिकांडकोके होने तक चला जाता है। तत्पश्चात् उनके व्यतीत होनेपर सम्यक्त्वप्रकृतिकी चरमफालिको नष्ट करनेके लिए ग्रहण करता हुआ कृतकृत्यवेदककालप्रमाण स्थितियोको छोड़कर शेपका ग्रहण करता है। पुनः उसे ग्रहणकर और गुणश्रेणीनिक्षेपके द्वारा निक्षिप्त कर अनिवृत्तिकरणके कालको समाप्त करता है । इस प्रकार प्रतिसमय अपवर्तन करता हुआ एकसमयकालप्रमाण एक स्थितिके उदयमे स्थित रहने तक उदयावली-प्रविष्ट स्थितियोको गलाता जाता है । उस समय सम्यक्त्वप्रकृतिकी जघन्य स्थितिविभक्ति होती है। इसी प्रकार लोभसंज्वलन आदि शेप प्रकृतियोकी स्थितिविभक्तिका जघन्य काल जयधवला टीकासे जान लेना चाहिए। पूर्वसूत्रमे कही गई मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व आदि प्रकृनियोकी जघन्य स्थितिविभक्ति एक समय कालप्रमाण नहीं कहनेका कारण यह है कि उनका सम्यक्त्वप्रकृति के समान स्वोदयसे क्षपण नही होता है।
चूर्णिसू०-क्रोधसंज्वलनकपायकी जघन्य स्थितिविभक्तिका काल अन्तमुहूर्त कम दो मासप्रमाण है ॥१८॥
विशेषार्थ-चरित्रमोहका क्षपण करनेवाला जीव जब क्रोधसंज्वलनकी दो कृष्टियोका क्षय करके तीसरी कृष्टिका क्षय करता हुआ उसकी प्रथम स्थितिमे एक समय अधिक एक आवली-प्रमाण कालके शेप रहने पर क्रोधसंज्वलनके पूरे दो मासप्रमाण जघन्यबन्धको वॉधता है, तब एक समय कम दो आवलीप्रमाण क्रोधसंज्वलनके शुद्ध समयप्रवद्ध रहते है। क्योकि, उस समय उत्पादानुच्छेदके द्वारा क्रोधके पुरातन सत्त्वकी चरिमफालीका निःशंप विनाश पाया जाता है । तत्पश्चात् बंधावलीके अतिक्रान्त होनेपर, एक समय कम आवलीप्रमाण फालियोके पर-प्रकृतिरूपसे संक्रामित होनेपर, तथा दो समय कम दो आवली प्रमाण समयप्रबद्धोंके सम्पूर्णतः परस्वरूपसे चले जानेपर उस समय एक समय कम दो आवलीसे न्यून दो मास