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गा० २२]
स्थितिविभक्ति-अर्थपद-निरूपण ५. एदाणि चेव उत्तरपयडिहिदिविहत्तीए कादवाणि । ६. उत्तरपयडिहिदिविहत्तिमणुमग्गइस्सामो । ७. तं जहा । तत्थ अट्ठपदं-एया हिदी हिदिविहत्ती, अणेयाओ द्विदीओ द्विदिविहत्ती। जीवोका पाया जाना संभव है। विवक्षितकर्मके बन्धका अभाव होकर पुनः उस कर्मका बन्ध करनेवालेको अवक्तव्यस्थिति-विभक्तिवाला कहते है। भुजाकारविभक्तिमे इनका विचार तेरह अनुयोगद्वारोसे किया गया है। उनके नाम इस प्रकार है-समुत्कीर्तना, स्वामित्व, काल, अन्तर, नानाजीवोकी अपेक्षा भंगविचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, भाव और अल्पवहुत्व ।
पदनिक्षेप-भुजाकारबंधका जघन्य और उत्कृष्टपदोके द्वारा विशेप वर्णन करनेको पदनिक्षेप कहते है । इस अधिकारमे 'पद' शब्दसे वृद्धि, हानि और अवस्थान इन तीन पदोका ग्रहण किया गया है । ये तीनो पद उत्कृष्ट भी होते है और जघन्य भी । इस अनुयोगद्वारमे यह बतलाया गया है कि कोई एक जीव यदि प्रथम समयमे अपने योग्य जघन्य स्थितिवन्ध करता है और दूसरे समयमे वह स्थितिको बढ़ाकर बन्ध करता है, तो उसके वन्धमे अधिकसे अधिक कितनी वृद्धि हो सकती है और कमसे कम कितनी वृद्धि हो सकती है । इसी प्रकार यदि कोई जीव उत्कृष्ट स्थितिवन्ध कर रहा है और अनन्तर समयमे वह स्थितिको घटाकर वन्ध करता है, तो उस जीवके वन्धमे अधिकसे अधिक कितनी हानि हो सकती है और कमसे कम कितनी हानि हो सकती है। वृद्धि या हानिके न होनेपर जो ज्योका त्यो पूर्व प्रमाणवाला ही बन्ध होता है, वह अवस्थितबन्ध कहलाता है। इस प्रकार पदनिक्षेप अधिकारमे वृद्धि, हानि और अवस्थान, इन तीनोका विचार किया जाता है ।
वृद्धि-इस अनुयोगद्वारमे पड्गुणी हानि और वृद्धिके द्वारा स्थितिबन्धका विचार किया गया है।
चूर्णिसू० -मूलप्रकृतिस्थितिविभक्तिमें बतलाये गये इन ही अनुयोगद्वारोको उत्तरप्रकृतिस्थितिविभक्तिमे भी प्ररूपण करना चाहिए ।। ५ ॥
चूर्णिसू०-अब उत्तरप्रकृतिस्थितिविभक्तिका अनुमार्गण करते हैं । वह इस प्रकार है। उसमे यह अर्थपद है-एक स्थिति भी स्थितिविभक्ति है, और अनेक स्थितियाँ भी स्थितिविभक्ति है ॥ ६-७ ॥
विशेपार्थ-कर्मस्वरूपसे परिणत हुए कार्मण पुद्गलस्कन्धोके कर्मपना न छोड़कर रहनेके कालको स्थिति कहते है । कर्मकी ऐसी एक स्थितिको एकस्थिति कहते हैं । इस एक स्थितिकी विभक्ति होती है, क्योकि, एक समय कम, दो समय कम आदि स्थितियोसे उसमे भेद पाया जाता है । अथवा, सूक्ष्मसाम्परायिक संयतके मोहकर्मके अन्तिम समयसम्बन्धी कर्मस्कन्धके त्ति एसो अप्पदरबधो णाम | अवछिदवधे त्ति तत्य इम अठ्ठपद-जाओ एहि ट्दिीओ बधदि अण तर ओसक्काविद-उस्सक्काविदविदिक्कते समए तत्तियाओ चेव बधादि त्ति एमो अवदिबंधो णाम । एदेण अठ्ठपदेण तत्थ इमाणि तेरस अणियोगद्वाराणि-समुक्कित्तणा सामित्त जाव अप्पाबहुगे त्ति । महाव०