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ठिदिविहत्ती
१. ठिदिविहत्ती दुविहा मूलपयडिडिदिविहत्ती चेव उत्तरपयडिडिदिविहत्ती' चेव । २. तत्थ अट्ठपढ़ें-एगा ठिदी ठिदिविहत्ती, अणेगाओ ठिदीओ ठिदिविहत्ती ।
स्थितिविभक्ति
पूर्व - वर्णित प्रकृति विभक्ति-द्वारा अट्ठाईस मोहप्रकृतियो के स्वभावसे परिचित शिष्यके लिए, प्रवाहरूपमे आदि-रहित, किन्तु एक एक समयमे बंधनेवाले समयप्रवद्धविशेपकी अपेक्षा सादि - सान्त उन्ही अट्ठाईस मोह - प्रकृतियोकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थितिको चौदह मार्गणास्थानका आश्रय लेकर प्ररूपण करनेके लिए इस स्थितिविभक्ति नामक अर्थाधिकारका अवतार हुआ है।
चूर्णिसू०-स्थितिविभक्ति दो प्रकारकी है, मूलप्रकृतिस्थितिविभक्ति और उत्तरप्रकृतिस्थितिविभक्ति ॥ १॥
विशेषार्थ - एक समय मे बंधे हुए समस्त मोहकर्म - स्कन्धके प्रकृतिसमूहको मूलप्रकृति कहते है । कर्म-बंध होने के अनन्तर उसके आत्माके साथ बने रहने के कालको स्थिति कहते है । विभक्तिनाम भेद या पृथग्भावका है । अतएव मूलप्रकृति की स्थिति के विभागको मूल् प्रकृति-स्थितिविभक्ति कहते है । मोहकर्मकी पृथक्-पृथक् अट्ठाईस उत्तरप्रकृतियोंके स्थितिविभागको उत्तरप्रकृति-स्थितिविभक्ति कहते है |
चूर्णिसू०
० - उक्त दोनों प्रकारकी स्थितिविभक्तियों का यह अर्थपद है - एक स्थिति स्थितिविभक्ति है और अनेक स्थितियॉ स्थितिविभक्ति हैं ||२||
विशेषार्थ - प्र - प्रकृत अधिकारके अर्थ-बोधक पदको अर्थपद कहते है । मोहसामान्यरूप मूलप्रकृतिक स्थितिको एक स्थिति कहते हैं । उत्तरप्रकृतिस्वरूप मोहकर्मकी स्थितियों को अनेक स्थिति कहते हैं । इस प्रकार एक स्थितिकी विभक्तिको भी स्थितिविभक्ति कहते हैं और अनेक स्थितियांकी विभक्तियांको भी स्थितिविभक्ति कहते है । यह स्थितिविभक्तिका अर्थ |
१ एगसमयम्मि बढासेसमोहक मक्खंवाण पर्याडिसमूहो मूलपयडी णाम । तिस्से हिंदी मूलपयडिहिदी | वपुध अट्टावीसमोहपयडीणं हिदीओ उत्तरपयडिहिदी णाम । विहत्ती भेदो पृधभावो त्ति एयो । हिदीए वित्ती हिदिविद्दत्ती । जयध०
२ किमपद णाम ? भणिस्समाण अहियारस्स जोणिभावेण अवदि त्यो अत्थपद णाम । जयध० ३ का हिंदी णाम ? कम्मसरुवेण परिणदाणं कम्मइयपोग्गलक्संघाण कम्मभावमछडिय अच्छणकालले
दिदी णाम । जयव०