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गा० २२ ]
एकैक उत्तर प्रकृतिविभक्ति-निरूपण
अविभक्तिवाला एक जीव होता है । (६) कदाचित् विवक्षित प्रकृतिकी विभक्तिवाला एक जीव और अविभक्तिवाले अनेक जीव होते हैं । (७) कदाचित् विवक्षित प्रकृतिकी विभक्तिवाले अनेक जीव और अविभक्तिवाला एक जीव होता है । (८) कदाचित् विवक्षित प्रकृतिकी विभक्ति और अविभक्तिवाले अनेक जीव होते है । इस प्रकार आठ आठ भंग तक होते है, जिन्हे जयधवला टीकासे जानना चाहिए । विस्तार के भयसे यहाॅ नहीं लिखा है । (५) मोहकर्मी उत्तरप्रकृतियोकी विभक्ति और अविभक्ति करनेवाले जीवो के संख्याप्रमाणके निर्णय करनेवाले अनुयोगद्वारको परिमाणानुगम कहते है । ओघसे सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दो प्रकृतियो के सिवाय शेष छब्बीस प्रकृतियोकी विभक्ति करनेवाले जीवोका परिमाण अनन्त है, और अविभक्तिवाले जीवोका भी परिमाण अनन्त है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दोनो प्रकृतियोकी विभक्ति करनेवाले जीवोका परिमाण असंख्यात है, किन्तु उन्हीकी अविभक्तिकरनेवाले जीवोका परिमाण अनन्त है । इसी प्रकार आदेशकी अपेक्षा भी विभक्ति और अविभक्ति करनेवाले जीवोका परिमाण यथासंभव अनन्त, असंख्यात और संख्यात जान लेना चाहिए । (६) मोहकर्मसम्वन्धी उत्तरप्रकृतियोकी विभक्ति और अविभक्ति करनेवाले जीवोके वर्तमान निवासरूप क्षेत्रके निर्णय करनेवाले अनुयोगद्वारको क्षेत्रानुगम कहते हैं । ओवसे सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दो प्रकृतियो के अतिरिक्त शेप छब्बीस प्रकृतियो की विभक्ति करनेवाले जीवोका क्षेत्र सर्वलोक है, किन्तु अविभक्ति करनेवाले जीवोका क्षेत्र लोकका असंख्यातचॉ भाग, असंख्यात वहुभाग और सर्व लोक है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दोनो प्रकृतियोकी विभक्तिवाले जीवोका क्षेत्र लोकका असंख्यातवा भाग है । इन्ही दोनो प्रकृतियो की अविभक्तिवाले जीवोका क्षेत्र सर्व लोक है । इसी प्रकार आदेशकी अपेक्षा भी विभक्ति-अविभक्ति करनेवाले जीवीके क्षेत्रका निर्णय कर लेना चाहिए । ( ७ ) मोहकर्मसम्बन्धी उत्तर प्रकृतियोकी विभक्ति और अविभक्ति करनेवाले जीवोके त्रिकाल निवाससम्बन्धी क्षेत्रके निर्णय करनेवाले अनुयोगद्वारको स्पर्शनानुगम कहते है । ओसे सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दो प्रकृतियो के अतिरिक्त शेप छव्वीस प्रकृतियोकी विभक्तिवाले जीवोका स्पर्शन-क्षेत्र सर्व लोक है । इन्हीं छब्बीस प्रकृतियोकी अविभक्तिवाले जीवोका स्पर्शनक्षेत्र लोकका असंख्यातवाँ भाग, असंख्यात बहुभाग और सर्वलोक है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व इन दोनो प्रकृतियांकी विभक्तिवाले जीवोका स्पर्शनक्षेत्र लोकका असंख्यातवाँ भाग, त्रसनालीके चौदह भागोमेसे कुछ कम आठ भाग, अथवा सर्व लोक है । इन्हीं दोनो प्रकृतियोकी अविभक्तिवाले जीवोका स्पर्शनक्षेत्र सर्व लोक है । इसी क्रम आदेशकी अपेक्षा भी स्पर्शनक्षेत्रका निर्णय कर लेना चाहिए । ( ८ ) पहले जो कालका निर्णय किया गया है वह एक जीवकी अपेक्षा किया गया है, अब उसी कालका निर्णय नाना जीवोकी अपेक्षा करते है । ओघसे मोहकी अट्ठाईस प्रकृतियो की विभक्तियांका काल सर्व काल है, अर्थात् नानाजीवोकी अपेक्षा अठ्ठाईस प्रकृतियो की सत्तावाले