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गा० २२]
प्रकृतिस्थानविभक्ति-अल्पवहुत्व-निरूपण १०६. सव्वत्थोवा पंचसंतकम्पविहत्तिया । १०७. एकसंतकम्मविहत्तिया संखेजगुणा । १०८. दोण्हं संतकम्मविहत्तिया विसेसाहिया । १०९. तिण्हं संतकम्मविहत्तिया विसेसाहिया । ११०. एक्कारसण्हं संतकम्मविहत्तिया विसेसाहिया । १११. बारसण्हं संतकम्मविहत्तिया विसेसाहिया । ११२. चदुण्हं संतकम्मविहत्तिया संखेजगुणा । ११३. तेरसहं संतकम्मविहत्तिया संखेजगुणा । ११४. बावीससंतकम्मविभक्तिका काल असंख्यातगुणा है। इक्कीस प्रकृतियोकी विभक्तिके कालसे चौवीस प्रकृतियोंकी विभक्तिका काल संख्यातगुणा है। चौबीस प्रकृतियोकी विभक्तिके कालसे अट्ठाईस प्रकृतियोकी विभक्तिका काल विशेप अधिक है। यह विशेप अधिक काल पल्योपमके तीन असंख्यातवे भाग-प्रमाण है। अट्ठाईस प्रकृतियोकी विभक्तिके कालसे छब्बीस प्रकृतियोकी विभक्तिका काल अनन्तगुणा है । क्योकि, छब्बीस प्रकृतिकी विभक्तिका काल अनादि-अनन्त भी बतलाया गया है, तथा सादि-सान्त भी। सादि-सान्त उत्कृष्ट काल भी उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन कहा गया है, इसलिए इसका काल अनन्तगुणा कहा है। चार, तीन, दो और एक प्रकृतिकी विभक्तिका काल जघन्य भी होता है और उत्कृष्ट भी होता है। उनमेसे अन्य कपायके उदयसे आपकश्रेणी पर चढ़े हुए जीवके जघन्य काल और स्वोदयसे चढ़े हुए जीवके उत्कृष्ट काल होता है । तथा, पाँच प्रकृतिकी विभक्तिसे लेकर तेईस प्रकृतियोकी विभक्ति तकका जघन्य
और उत्कृष्ट काल सदृश होता है, केवल तेरह और वारह विभक्तिका जघन्य काल भी होता है, इतना विशेप जानना चाहिए ।
अब चूर्णिकार इसी काल-सम्बन्धी अल्पबहुत्वका आश्रय लेकर जीव-सम्बन्धी अल्पबहुत्वका प्ररूपण करते है
चूर्णिसू ०-मोहनीयकर्मके पांच प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव सबसे कम हैं; क्योकि, अन्य विभक्तियोकी अपेक्षा इसका काल केवल एक समय कम दो आवलीमात्र है ॥१०६॥ पांच प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीवासे एक प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्ति करनेवाले जीव संख्यातगुणित हैं, क्योकि इस विभक्तिका काल संख्यात आवलीप्रमाण है ॥१०७॥ एक प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीवोसे दो प्रकृतियोके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव विशेप अधिक है ॥१०८॥ दो प्रकृतियोके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीवोसे तीन प्रकृतियोके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव विशेप अधिक है ॥१०९॥ तीन प्रकृतियोके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीवोसे ग्यारह प्रकृतियोके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव विशेप अधिक हैं ॥११०॥ ग्यारह प्रकृतियोके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीवोसे बारह प्रकृतियोंके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव विशेप अधिक है ॥१११॥ वारह प्रकृतियोंके सत्त्वम्थानकी विभक्तिवाले जीवोसे चार प्रकृतियोंके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव संख्यातगुणित है ॥११२॥ चार प्रकृतियोके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीवोसे तेरह प्रकृतियोके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव संन्यात