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कसाय पाहुड सुन्त
[ २ प्रकृतिविभक्ति विहत्तिया संखेजगुणा । ११५. तेवीसाए संतकम्मविहत्तिया विसेसाहिया । ११६. सत्तावीसाए संतकम्मविहत्तिया असंखेजगुणा । ११७. एकवीसाए संतकम्मविहत्तिया असंखेज्जगुणा । ११८. चउवीसाए संतकम्पिया असंखेज्जगुणा । ११९. अट्ठावीस संतकम्मिया असंखेजगुणा । १२०. छव्वीस चिहत्तिया अनंतगुणा । १२१. भुजगारो अप्पद अवद्विदो कायव्वो ।
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गुण हैं ||१३|| तेरह प्रकृतियो के सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीवोसे वाईस प्रकृतियो के सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव संख्यातगुणित है ॥ ११४ ॥ वाईस प्रकृतियो के सत्त्वस्थान की विभक्तिवाले जीवोसे तेईस प्रकृतियोंकी सत्त्वविभक्तिवाले जीत्र विशेप अधिक है ||११५|| तेईस प्रकृतियो के सत्त्वस्थान की विभक्तिवाले जीवोसे सत्ताईस प्रकृतियो के सत्त्वस्थानवाले जीव असंख्यातगुणित है ॥ ११६ ॥ | सत्ताईस प्रकृतियो के सत्त्वस्थानवाले जीवोसे इक्कीस प्रकृतियो के सत्त्वस्थानवाले जीव असंख्यातगुणित है ॥ ११७ ॥ इक्कीस प्रकृतियोंके सत्त्वस्थानवाले जीवोसे चौबीस प्रकृतियोके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणित हैं। ॥ ११८ ॥ चौवीस प्रकृतियो के सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीवोसे अट्ठाईस प्रकृतियो के सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव असंख्यातगुणित है ॥ ११९॥ अट्ठाईस प्रकृतियो के सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीवोसे छवीस प्रकृतियोंके सत्त्वस्थानकी विभक्तिवाले जीव अनन्तगुणित
॥१२०॥
चूर्णि सू० ० - इस प्रकृतिविभक्तिके चूलिकारूपसे स्थित भुजाकार, अल्पतर और अवस्थितस्वरूप स्थानोका निरूपण करना चाहिए ॥ १२१ ॥
विशेषार्थ - भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित इन तीनो प्रकारकी विभक्तिको भुजाकारविभक्ति कहते है । इस भुजाकारविभक्तिमे सत्तरह अनुयोगद्वार होते है । वे इस प्रकार हैं- समुत्कीर्त्तना, सादिविभक्ति, अनादिविभक्ति, ध्रुवविभक्ति, अध्रुवविभक्ति, एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, काल और अन्तर; नानाजीवोकी अपेक्षा भंगविचय, भागाभागानुगम, परिमाणाणुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, कालानुगम, अन्तरानुगम, भावानुगम और अल्पचहुत्व | चूर्णिकारने यहॉपर समुत्कीर्तना आदि शेप सोलह अनुयोगद्वारोको सुगम समझ कर या महाबन्ध आदि अन्य ग्रन्थोंमे विस्तृत निरूपण होनेसे उनका वर्णन नही किया है। केवल एक जीवकी अपेक्षा कालानुयोगद्वारका ही निरूपण किया है । क्योकि, शेष सभी अनुयोगद्वारोका मूल आधार कालानुयोगद्वार ही है । कालानुयोगद्वारके जान लेनेपर शेप अनुयोगद्वारोको बुद्धिमान् स्वयं जान सकते हैं ।
- तत्थ भुजगारविहत्तीए इमाणि सत्तारस अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवति । त जहासमुत्तिणा सादियविहत्ती अणादियविहत्ती धुवविद्दत्ती अद्धवविहत्ती एगजीवेण सामित्तं वाले अतर गाणाजीवेहि भगविचओ भागाभागो परिमाण खेत्तं पोषण कालो अतरं भावो अप्पाबहुअ नेदि । जयध०