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कसाय पाहुड सुत्त - [२ प्रकृतिविभक्ति ४२. एक्किस्से विहत्तियो को होदि ? लोहसंजलणा। ४३. दोण्हं विहत्तिओ को होदि ? लोहो माया च । ४४. तिण्हं विहत्ती लोहसंजलण-मायासंजलणमाणसंजलणाओ। ४५. चउण्हं विहत्ती चत्तारि संजलणाओ। ४६. पंचण्हं विहत्ती चत्तारि संजलणाओ पुरिसवेदो च । ४७. एकारसण्हं विहत्ती एदाणि चेव पंच छण्णोकसाया च । ४८. वारसण्हं विहत्ती एदाणि चेव इत्थिवेदो च । ४९. तेरसण्हं विहत्ती एदाणि चेव णबुंसयवेदो च । ५०. एकवीसाए विहत्ती एदे चेव अढ कसाया च । ५१. सम्मत्तेण वावीसाए विहत्ती । ५२. सम्मामिच्छत्तेण तेवीसाए विहत्ती । नपुंसकवेद । इन सभी उत्तरप्रकृतियोके समूहसे अट्ठाईस प्रकृतियोका सत्त्वस्थान होता है। सम्यक्त्वप्रकृतिके कम करनेसे सत्ताईसका, उसमेसे भी सम्यग्मिथ्यात्वके कम करनेसे छब्बीसका, अट्ठाईसमेसे अनन्तानुबंधीचतुष्कके कम करनेसे चौवीसका, इसमेसे मिथ्यात्वके कम करनेसे तेईसका, सम्यग्मिथ्यात्वके कम करनेसे वाईसका और सम्यक्त्वप्रकृतिके कम कर देनेसे इक्कीसका सत्त्वस्थान होता है । इस इक्कीसमेंसे अप्रत्याख्यानावरणादि आठ कपायोके कम करनेसे तेरहका, इसमेसे नपुंसकवेद कम करनेसे वारहका, स्त्रीवेद कम करनेसे ग्यारहका, इसमेंसे भी हास्यादि छह नोकषाय कम करनेसे पांचका, उसमेसे भी एक पुरुपवेद कम करनेसे चारका सत्त्वस्थान हो जाता है। इसमेसे भी क्रोधसंज्वलनके कम करनेसे तीनका, मानसंज्वलनके कम करनेसे दोका और भायासंज्वलनके कम करनेसे एक प्रकृतिरूप सत्त्वस्थान होता है।
चूर्णिसू०-एक प्रकृतिकी विभक्ति करनेवाला कौन है ? केवल एक लोभसंज्वलनकी सत्तावाला जीव एक प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्ति करनेवाला होता है। दो प्रकृतियोकी विभक्ति करनेवाला कौन है ? लोभसंज्वलन और मायासंज्वलन, इन दो प्रकृतियोकी सत्तावाला जीव दो प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्ति करनेवाला होता है। लोभसंज्वलन, मायासंचलन और मानसंज्वलन, इन तीन प्रकृतियोकी सत्तावाला जीव तीन प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्ति करनेवाला होता है। चारों संज्वलन-कपायोकी सत्तावाला जीव चार प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्ति करता है। चार संज्वलन और पुरुपवेदकी सत्तावाला जीव पॉच प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्ति करता है। चार संज्वलन, पुरुपवेद और हास्यादि छह नोकपाय इनकी सत्तावाला जीव ग्यारह प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्ति करता है। स्त्रावदसहित उक्त प्रकृतिवाला अर्थात् चार संज्वलन, और नपुंसकवेदके विना शेप आठ नोकपाय, इनकी सत्तावाला जीव बारह प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्ति करता है। नपुंसकवेद आर उक्त वारह प्रकृतियाँ अर्थात् चारो संज्वलन और नवो नोकपायोकी सत्तावाला जीव तेरह प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्ति करता है। उक्त तेरह प्रकृतियों और अप्रत्याख्यानावरण आदि आठ कपायोकी सत्तावाला जीव इक्कीस प्रकृतिरूप सत्त्वस्थानकी विभक्ति करता है । सम्यक्त्वप्रकृति-सहित उक्त इक्कीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जीव वाईस प्रतिस्प सन्व