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कसाय पाहुड सुत्त
[२ प्रकृतिविभक्ति ९८. उक्कस्सेण उवड्डपोग्गलपरियट्ट । ९९. अट्ठावीसविहत्तियस्स जहण्णेण एगसमओ । १००. उकस्सेण उवड्डपोग्गलपरियट्ट ।
चूर्णिसू०-सत्ताईस प्रकृतियोकी विभक्तिका उत्कृष्ट अन्तरकाल उपाधं पुद्गलपरिवर्तन है ॥९८॥
विशेषार्थ-कोई अनादि मिथ्यादृष्टि जीव अर्धपुद्गलपरिवर्तनकालके प्रथम समयमे सम्यक्त्वको ग्रहणकर यथाक्रमसे सत्ताईस प्रकृतियोकी विभक्ति करनेवाला हुआ। तत्पश्चात् सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिकी भी उद्वेलनाकर अन्तरको प्राप्त हुआ। जब उपापुद्गलपरिवर्तनकालमें सर्वजघन्य पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण काल शेष रहा, तव उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण कर और उसके साथ अन्तर्मुहूर्त काल विताकर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ । तत्पश्चात् सम्यक्त्वप्रकृतिके उद्वेलनाकालमे सर्वजघन्य अन्तर्मुहूर्तकाल शेप रहा, तब सम्यक्त्वके सन्मुख हो, अन्तरकरण करके और मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके द्विचरम समयमें सम्यक्त्वप्रकृतिकी उद्वेलनाकर अन्तिम समयमे सत्ताईस प्रकृतियोंकी विभक्ति करनेवाला होकर क्रमसे सिद्धिको प्राप्त हुआ। ऐसे जीवके पहलेके पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण कालसे तथा अन्तिम
अन्तर्मुहूर्तकालसे कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकाल सत्ताईस प्रकृतियोकी विभक्तिका पाया जाता है। ,
चूर्णिसू०-अट्ठाईस प्रकृतियोकी विभक्तिका जघन्य अन्तरकाल एक समय है।९९।।
विशेषार्थ-अट्ठाईस प्रकृतियोकी विभक्तिवाला कोई मिथ्यादृष्टि जीव, सम्यक्त्वप्रकृतिके उद्वेलनाकालमे अन्तर्मुहूर्त शेष रह जानेपर उपशमसम्यक्त्वके अभिमुख हो अन्तरकरण करके और मिथ्यात्वकी प्रथम स्थितिके द्विचरम समयमे सम्यक्त्वप्रकृतिकी उद्वेलना कर अन्तिम समयमे सत्ताईस प्रकृतियोकी विभक्ति करनेवाला हुआ। तदनन्तर समयमे उसने उपशमसम्यक्त्वको ग्रहणकर अट्ठाइस प्रकृतियो का सत्त्व उत्पन्न किया, तब उस जीवके अट्ठाइस प्रकृतियोकी विभक्तिका एक समयप्रमाण जघन्य अन्तरकाल उपलब्ध हुआ ।
चूर्णिसू०-अट्ठाईस प्रकृतियोकी विभक्तिका उत्कृष्टकाल उपार्धपुद्गल परिवर्तन है ॥१००॥
विशेषार्थ-किसी अनादि मिथ्यादृष्टि जीवने अर्धपुद्गल परिवर्तनके आदि समयमे उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण किया और अट्ठाईस प्रकृतियोकी विभक्ति करनेवाला हुआ। इस प्रकार अट्ठाईस विभक्तिका आरम्भ कर और सर्वजघन्य पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण कालके द्वारा सम्यक्त्वप्रकृतिकी उद्वेलना कर सत्ताईस प्रकृतियोकी विभक्ति करनेवाला हुआ
और अन्तरको प्राप्त हो अर्धपुद्गलपरिवर्तनकाल तक संसारमे परिभ्रमण कर अन्तमे सर्वजघन्य अन्तर्मुहूर्तप्रमाण संसारके अवशेप रह जाने पर उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण कर अट्ठाईस प्रकृतियोकी विभक्तिवाला होकर क्रमशः अन्तर्मुहूर्तकालसे सिद्ध हो गया । इस प्रकार पूर्वके पल्योपमके असंख्यातवे भागसे और अन्तके अन्तर्मुहूर्तकालसे कम अर्धपुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अट्ठाईस प्रकृतियोी विभक्तिका उत्कृष्ट अन्तर काल पाया जाता है।