________________
गा० २२]
संस्थानादिविभक्ति-निरूपण १३. वियप्पेण वट्टसंठाणाणि असंखेजा लोगा। १४. एवं तंस-चउरंस-आयद. परिमंडलाणं । १५. सरिसवट्ट सरिसवस्स अविहत्ती । १६. एवं सव्वत्थ | १७. जा सा भावविहत्ती सा दुविहा आगमदो य णोआगमदो य । १८. आगमदो उवजुत्तो पाहुडजाणओ। १९. णो आगमदो भावविहत्ती ओदइओ ओदइयस्स अविहत्ती । २०. ओदइओ उवसमिएण भावेण विहत्ती । २१. तदुभएण अवत्तव्यं । २२. एवं सेसेसु वि ।
चूर्णिमू०-उत्तर विकल्पोकी अपेक्षा वृत्तसंस्थान असंख्यातलोकप्रमाण है। इसी प्रकार त्रिकोण, चतुष्कोण और आयत-परिमंडल संस्थानोके भी उत्तर विकल्प असंख्यातलोकप्रमाण जानना चाहिए। सदृश-वृत्त आकार, अन्य सदृश-वृत्त आकारके सदृश होता है। इसी प्रकार सर्वत्र जानना चाहिए । यह संस्थानविकल्पविभक्ति है ॥१३-१६॥
विशेषार्थ-जिस प्रकार वृत्तके तीन भंग कहे हैं, उसी प्रकारसे चतुष्कोण, पंचकोण, आदिके भी तीन-तीन भंग जानना चाहिए। तथा इसी प्रकारसे वृत्त, चतुष्कोण आदिके भेद-प्रभेदोके भी तीन-तीन भंग जानना चाहिए । इस प्रकार यह सब मिलाकर संस्थानविभक्ति कहलाती है।
चूर्णिसू०--जो भावविभक्ति है, वह आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकार है ॥१७॥
विशेषार्थ-श्रुतज्ञानको आगमभाव कहते है और श्रुतज्ञानव्यतिरिक्त औदयिक आदि भावोको नोआगमभाव कहते हैं । इन दोनोके भेदसे भावविभक्तिके दो भेद होते है।
चूर्णिसू०-भावविभक्ति-विषयक प्राभृतका ज्ञायक और वर्तमानमे उपयुक्त जीवको आगमभावविभक्ति कहते है । औदयिकभाव औदयिकभावके समान है। औदयिकभाव औपशमिकभावके साथ असमान है । तदुभयकी अपेक्षा अवक्तव्य है । यह नोआगमभावविभक्ति है ॥१८-२१॥
विशेषार्थ-नोआगमभावके पांच भेद होते है-औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक क्षायिक और पारिणामिकभाव । इनमे गति औदायिकभाव कषाय औदयिकभावके समान है, क्योकि, औदयिकभावकी अपेक्षा दोनोमे कोई भेद नहीं है। कषाय औदयिकभाव सम्यक्त्वऔपशमिकभावके साथ असमान है, क्योकि, उदय-जनितभावके साथ उपशम-जनितभावकी समानताका विरोध है । तदुभय अर्थात् औदयिकभाव औदयिक और औपशमिकभावके साथ युगपत् कहनेपर अवक्तव्य होता है, क्योकि, विभक्ति और अविभक्ति इन दोनो शब्दोके एक साथ कहनेका कोई उपाय नहीं है । यह नोआगमभावविभक्ति है।
चूर्णिसू०-इसी प्रकारसे शेष भावोमे भो जानना चाहिए ॥२२॥
विशेषार्थ-जिस प्रकार औदयिकभावके औपशमिकभावके साथ विभक्ति और अवक्तव्य रूप दो भंग कहे हैं, उसी प्रकारसे क्षायिक, क्षायोपशिमक और पारिणामिकभावके साथ भी दो दो भंग होते है । जैसे-औदयिकभाव क्षायिकभावके साथ विभक्ति है, तथा