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कसाय पाहुड सुत्त
[२ प्रकृतिविभक्ति ७. खेत्तविहत्ती तुल्लपदेसोगाई तुल्लपदेसोगाटस्स अविहत्ती । ८. कालविहत्ती तुल्लसमयं तुल्लसमयस्स अविहत्ती। ९. गणणविहत्तीए एक्को एक्कस्स विहत्ती। १०. संठाणविहत्ती दुविहा संठाणदो च संठाणवियप्पदो च । ११. संठाणदो वट्ट वट्टस्स अविहत्ती। १२. वट्ट तंसस्स वा चउरंसस्स वा आयदपरिमंडलस्स वा विहत्ती । सदृशता पाई जाती है। इसी प्रकार जव विभक्ति-अविभक्तिरूप द्रव्योके युगपत् कहनेकी विवक्षा की जाती है, तो वह द्रव्य अवक्तव्य हो जाता है। क्योकि समान-असमान प्रदेशवाले दो द्रव्य एक साथ किसी एक शब्दके द्वारा नहीं कहे जा सकते हैं। इन तीनो भेदरूप द्रव्यविभक्तिको नोकर्मद्रव्यविभक्ति कहते है ।
चूर्णिसू ०-तुल्य-प्रदेशोसे अवगाढ क्षेत्र तुल्य-प्रदेशोसे अवगाढ क्षेत्रके साथ समान है, यह क्षेत्रविभक्ति है ॥७॥
विशेषार्थ-तुल्य-प्रदेशोसे अवगाढ (व्याप्त) क्षेत्र, अन्य तुल्य-प्रदेशोसे व्याप्त क्षेत्रके समान है। दो प्रदेश अधिक क्षेत्रके साथ असमान है समान और असमान प्रदेशवाले क्षेत्रको युगपत् कहनेकी अपेक्षा अवक्तव्य है । इस प्रकार इन तीनो भंगोकी अपेक्षा क्षेत्रसम्बन्धी विभक्ति या अविभक्तिको कहना क्षेत्रविभक्ति है ।
चूर्णिसू०-तुल्य-समयवाला द्रव्य अन्य तुल्य-समयवाले द्रव्यके साथ अविभक्ति है, यह कालविभक्ति है ॥८॥
विशेषार्थ-समान-समयवाला द्रव्य दूसरे समान-समयवाले द्रव्यके समान है । दो समय अधिक द्रव्य असमान है। समान और असमान समयवाले द्रव्योंको एक साथ कहनेकी अपेक्षा अवक्तव्य हैं। इस प्रकार इन तीनों भंगोकी अपेक्षा विभक्ति-अविभक्तिको कहना कालविभक्ति कहलाती है।
चूर्णिसू०-एक संख्या एक संख्याके साथ समान है, यह गणनाविभक्ति है ॥९॥
विशेषार्थ-एक संख्याकी एक संख्याके साथ अविभक्ति है, अर्थात् विवक्षित एक संख्यावाला द्रव्य अन्य एक संख्यावाले द्रव्यके साथ समान है, विसश संख्याके साथ असमान है । तथा समान और असमान संख्याओकी युगपत् विवक्षा होने पर अवक्तव्य है। यह गणनाविभक्ति है।
चूर्णिसू०-संस्थान और संस्थानविकल्पके भेदसे संस्थानविभक्ति दो प्रकार है॥१०॥
विशेषार्थ-त्रिकोण, चतुष्कोण, वृत्त आदि अनेक प्रकारके आकारोको संस्थान कहते हैं। तथा उन्हीं त्रिकोण, चतुष्कोण, वृत्त आदिके भेद-प्रभेदोंको संस्थान-विकल्प कहते है ।
चूर्णिसू०-वृत्त द्रव्य वृत्त द्रव्य के साथ सहश है । विवक्षित वृत्त द्रव्य त्रिकोण, चतुष्कोण, अथवा आयत-परिमंडल आकारवाले अन्य द्रव्यके साथ असहश है। (वृत्त और अवृत्त आकारवाले दो द्रव्य युगपत् कहनेकी अपेक्षा अवक्तव्य है।) यह संस्थानविभक्ति है ॥११-१२॥