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____ कसाय पाहुड सुत्त [१ पंजदोसविहत्ती १०४. दोसो को होइ ? १०५. अण्णदरो णेरइयो वा तिरिक्खो वा मणुस्सो वा देवो वा । १०६. एवं पेज्जं । १०७. कालाणुगमेण दुविहो णिदेसो ओघेण आदेसेण य । १०८. दोसो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुकस्सेण अंतोमुहुत्त । १०९. एवं पेजमणुगंतव्वं । ११०. आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइएसु पेजदोसं केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण एगसमओ ।
शंकाचू०-द्वेषरूप कौन होता है ? ॥१०४॥
समाधानचू०-कोई एक नारकी, अथवा तिर्यंच, अथवा मनुष्य, अथवा देव द्वेपरूप होता है, अर्थात् चारो गतिके जीव द्वेषके स्वामी है ॥१०५॥
अव ओपनिर्देशकी अपेक्षा प्रयके स्वामित्वका निरूपण करते है
चूर्णिसू०-इसी प्रकार प्रेयके भी स्वामी जानना चाहिए । अर्थात् कोई एक नारकी, तिर्यच, मनुष्य और देव प्रेयका स्वामी है ।।१०६।।
अव कालानुयोगद्वारके निरूपण करनेके लिए उत्तर सूत्र कहते है
चूर्णिसू०-कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघनिर्देश और आदेश निर्देश ।।१०७॥
उनमेसे पहले ओघनिर्देशकी अपेक्षा कालका निरूपण करते है
चूर्णिसू०-द्वेप कितने काल तक होता है ? द्वेष जघन्य और उत्कृष्ट कालकी अपेक्षा अन्तमुहूर्त तक होता है । अर्थात् द्वेपका जघन्य काल और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है ॥१०८॥
अब ओघनिर्देशकी अपेक्षा प्रयके कालका निरूपण करते है
चूणिसू०-इसी प्रकार प्रेयका भी काल जानना चाहिए । अर्थात् प्रेयका भी जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त-प्रमाण है ।।१०९।।
विशेषार्थ-यहॉपर प्रेय और द्वेपका जघन्य वा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ही बतलाया गया है, जिसका अभिप्राय यह है कि प्रेय अथवा द्वेषसे परिणत जीवके मरण अथवा व्याघात होनेपर भी अन्तर्मुहूर्त कालको छोड़कर एक या दो आदि समय-प्रमाण काल नहीं पाया जाता है । जीवहाणमे काल-प्ररूपणाके भीतर यद्यपि क्रोधादिकषायोके एक समयप्रमाण जघन्य कालकी प्ररूपणा की गई है, तथापि उसकी यहॉपर विवक्षा नहीं की गई है, क्योकि, वह इससे भिन्न आचार्य-परम्पराका उपदेश है।
अब आदेशनिर्देशकी अपेक्षा प्रेय और द्वेषका जघन्य काल कहते है
चूर्णिसू०-आदेशनिर्देशकी अपेक्षा गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिमे नारकियोमे प्रेय और द्वेप कितने काल तक होता है ? जघन्य कालकी अपेक्षा एक समय होता है । अर्थात् नरकगतिमे नारकियोके प्रेय और द्वेपका जघन्य काल एक समय है ॥११०॥
विशेपार्थ-नारकियोमे द्वेपके एक समयप्रमाण जघन्य काल होनेका कारण यह है