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गा० २१]
वारह अनुयोगोंसे प्रेयोद्वेष-निरूपण दृष्टि आदि नौ गुणस्थानोंमें रागी और द्वेपी जीवोका सर्वकाल अस्तित्व पाया जाता है । दशवे गुणस्थानमे केवल रागी जीवोका अस्तित्व पाया जाता है। आगेके गुणस्थानोंमें राग और द्वेपके धारक जीवोका अस्तित्व नहीं है, किन्तु राग-द्वेपसे रहित वीतरागी जीवोका अस्तित्व पाया जाता है। इसी प्रकार चौदह मार्गणाओमे भी रागी-द्वेषी जीवोके सत्त्व असत्त्वका निर्णय करना चाहिए । (६) रागी-द्वेषी जीवोके प्रमाणका निर्णय करनेवाला अनुयोगद्वार द्रव्यप्रमाणानुगम कहलाता है। इसके भी ओघ और आदेशकी अपेक्षा दो प्रकारका निर्देश है। ओघनिर्देशकी अपेक्षा रागभावके धारक मिथ्यादृष्टि जीव अनन्त है और द्वेषभावके धारक भी मिथ्यादृष्टि जीव अनन्त है सासादनादिगुणस्थानवर्ती असंख्यात है। आदेशनिर्देशकी अपेक्षा तिर्यग्गतिमे राग-द्वेषके धारक अनन्त जीव हैं और शेप गतियोमे असंख्यात है। इन्द्रियमार्गणामे एकेन्द्रियोमे अनन्त और विकलेन्द्रिय तथा सकलेन्द्रिय जीवोमें असंख्यात है। इस क्रमसे सभी मार्गणाओमे रागी द्वेपी जीवोका द्रव्यप्रमाण जान लेना चाहिए । ( ७ ) रागी द्वेषी जीवोके वर्तमानकालिक निवासके प्रतिपादन करनेवाले अनुयोगद्वारको क्षेत्रानुगम कहते है । इसका भी ओघ और आदेशकी अपेक्षा दो प्रकारका निर्देश है। ओघनिर्देशकी अपेक्षा रागी और द्वेषी मिथ्यादृष्टि जीव सर्वलोकमे रहते है । सासादनादिगुणस्थानवर्ती रागी द्वेषी जीव लोकके असंख्यातवे भागमे रहते है। रागद्वेष-रहित सयोगिकेवली लोकके असंख्यातवें भागमे, असंख्यात बहुभागोमे और सर्वलोकमें रहते हैं । आदेशनिर्देशकी अपेक्षा नारकी, मनुष्य और देव लोकके असंख्यातवे भागमें रहते है । तिर्यग्गतिके जीव सर्वलोकमे रहते है। इन्द्रियमार्गणाकी अपेक्षा एकेन्द्रिय जीव सर्वलोकमें और विकलेन्द्रिय जीव लोकके असंख्यातवे भागमे रहते है । सकलेन्द्रिय जीव लोकके असंख्यातवे भागमे, असंख्यात बहुभागमे और सर्वलोकमे रहते है। इस प्रकारसे शेष मार्गणाओके क्षेत्रको जान लेना चाहिए । (८) रागी द्वेषी जीवोके त्रिकालवर्ती निवासरूप क्षेत्रके प्रतिपादन करनेवाले अनुयोगद्वारको स्पर्शनानुगम कहते हैं। इसके भी ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ये दो भेद हैं । ओपनिर्देशकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि रागी द्वेषी जीवोने सर्व लोकका स्पर्श किया है । सासादनगुणस्थानवर्ती रागी द्वेषी जीवोने स्वस्थानकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवॉ भाग, विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा लोकनालीके चौदह भागोमेंसे आठ भाग, मारणान्तिकसमुद्धातकी अपेक्षा चौदह भागोमेसे वारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार शेप गुणस्थानोके रागी द्वेषी जीवोके यथासंभव त्रिकालगोचर स्पर्शनक्षेत्रको जान लेना चाहिए । (९) नाना जीवोकी अपेक्षा कालानुगमका भी दो प्रकारका निर्देश है। ओघनिर्देशकी अपेक्षा रागी द्वेपी जीव सर्व काल होते है, क्योकि, ऐसा कोई भी समय नहीं है, जब कि संसारमे रागी द्वेपी जीव न पाये जावे । आदेशनिर्देशकी अपेक्षा भी रागी द्वेपी जीव सर्वकाल हैं, केवल सान्तरमार्गणाओको छोड़कर। उनमेसे उपशमसम्यग्दृष्टि, वक्रियिकमिश्रकाययोगी, लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य आदिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है।