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गा० २१]
नयोंकी अपेक्षा प्रेयोद्वेष-निरूपण
अनेक असत्-उपायोका-कुमार्गोका-आश्रय लेना पड़ता है। दूसरे, जिसके लिए या जिसके ऊपर अभिमान किया जाता है, वह व्यक्ति भी प्रतिस्पर्धाके कारण सदा बदला लेनेकी चेष्टा किया करता है, और अवसर पाते ही अभिमानीको नीचा दिखाए विना नहीं रहता । इस प्रकार क्रोधके समान ही मानकषाय भी उपयुक्त अशेप दोपोका कारण होनेसे द्वेषरूप ही है। नैगम और संग्रहनयकी अपेक्षा मायाकपायको प्रेयरूप कहा गया है। इसका कारण यह है कि मायाका आधार सदा ही कोई प्रिय पदार्थ हुआ करता है। मनुष्य किसी प्रिय वस्तुके छिपानेके लिए ही मायाचारी करता है। क्रोध और मानकपायके समान मायाचारीका अभिप्राय साधारणतः दूसरेके दिलको दुखानेका नहीं हुआ करता है, किन्तु अपनी गोप्य वस्तुको गुप्त रखनेका ही हुआ करता है। दूसरी बात यह है कि मायाचारी पुरुष अपनी मायाचारीकी सफलतापर सन्तोषका अनुभव करता है। किन्तु क्रोधी और मानीकी ऐसी बात नहीं है, उसे तो सदा ही पीछे पछताना पड़ता है। क्वचित् कदाचित् मायाका प्रयोग क्रोध और मानकषायकी पुष्टिमे भी देखा जाता है, सो वहॉपर क्रोध और मानमूलक मायाकषाय जानना चाहिए, केवल मायाकषाय नही । यही बात क्रोध, मान और लोभके विपयमे भी जानना चाहिए। इस प्रकार उक्त दोनो नयोकी अपेक्षा मायाकपायको प्रेयरूप कहना युक्ति-युक्त ही है। लोभकपाय भी उक्त दोनो नयोकी अपेक्षा प्रेयरूप है । इसका कारण यह है कि लोभ धनोपार्जन, परिग्रह-संरक्षण, ऐश्वर्य-वृद्धि आदिके लिए किया जाता है । इन सभी वातोके मूलमे लोभीको अपने वर्तमान और आगामी सुखकी कामना हुआ करती है। मनुष्य अपने आपको, अपने कुटुम्बी जनोको, अपने सजातीय और स्वदेशीय बन्धुओको सुखी बनानेकी इच्छासे ही धन-संग्रह किया करता है। इस प्रकार लोभ करनेवालेकी दृष्टि वर्तमान और आगामी कालमे सुख-प्राप्तिकी ही रहती है। इसलिए नैगम और संग्रहनयकी दृष्टिसे लोभको प्रेयरूप कहना उचित ही है । अरति, शोक, भय और जुगुप्सा, ये चारो नोकषाय नैगम और संग्रहनयकी अपेक्षा द्वेपरूप है, क्योकि, क्रोधकषायके समान ही ये भी अशान्ति और दुःखके कारण है । हास्य, रति, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद, ये पॉच नोकपाय प्रेयरूप हैं, क्योकि, लोभकयायके समान ये सभी नोकवाय प्रेयके कारण है। चूर्णिसूत्रमे नोकपायका पृथक् उल्लेख नही होनेपर भी सूत्रके देशामर्शक होनेसे उक्त सूत्रमें इन नोकपायोका अन्तर्भाव समझना चाहिए। यहाँ एक आशंका की जा सकती है कि क्रोधादिकपायो और अरति, शोकादि नोकपायोको द्वेपरूप ही मानना चाहिए, क्योकि, ये सभी कर्मास्रवके कारण हैं । फिर माया, लोभ और हास्य आदिको प्रेयरूप कैसे कहा १ इसका समाधान यह है कि यद्यपि यह सत्य है कि सभी कपाय और नोकपाय कर्मास्रवके कारण होते है। किन्तु यहॉपर वर्तमानकालिक या भविष्यकालिक प्रसन्नता मात्रकी ही विवक्षासे माया, लोभ और हास्यादिकको प्रेयरूप कहा है।