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कसाय पाहुड सुत्त
[१ पेजदोसविहत्ती २७. णोआगमदव्वयेज्ज तिविहं-हिदं पेज्ज, सुहं पेज्जं, पियं पेज्ज । गच्छगा च सत्त भंगा। २८. एदं णेगमस्स । २९. संगह-ववहाराणं उजुसुदस्स च सव्वं दवं पेज्ज । ३०. भावपेज्जं ठवणिज्जं ।।
चूर्णिसू०-नोकर्मतव्यतिरिक्त-नोआगमद्रव्यप्रय तीन प्रकारका है--हितप्रय, सुखप्रय और प्रियप्रय । इन तीनोके गच्छसम्बन्धी सात भंग होते है ॥२७॥
विशेपार्थ-रोगादिके उपशमन करनेवाले द्रव्यको हितप्रय कहते है । जैसे--पित्तज्वरादिके उपशमनका कारणस्वरूप कडवी गिलोय आदि । जीवके आल्हादके कारणभूत द्रव्यको सुखमय कहते है । जैसे--भूखे पुरुषको मिष्टान्न और प्यासे पुरुपको शीतल जल। अपनी रुचिके विपयभूत द्रव्यको प्रियप्रय कहते है । जैसे---स्त्री, पुत्र, मित्रादि । इस प्रकार नोआगमद्रव्यप्रयके ये तीन एक-संयोगी स्वतन्त्र भंग हुए । अब द्विसंयोगी भंग कहते कहते है--द्राक्षाफल हितरूप भी हैं और सुखरूप भी है, क्योकि, पित्तज्वरवाले पुरुपके स्वास्थ्य और आल्हादका कारण है (१)। निम्ब हितरूप भी है और प्रिय भी है, क्योकि, तिक्तप्रिय पित्तज्वराभिभूत पुरुषके स्वास्थ्य और अनुरागका कारण है (२)। दुग्ध सुखकर भी है और प्रिय भी है, क्योकि, आमव्याधिसे पीड़ित एवं मधुर-प्रिय पुरुषके आल्हाद और अनुरागका कारण है। किन्तु , उक्त पुरुपके लिए दुग्ध हितकारक नहीं है, क्योकि, वह आमका वर्धक होता है (३) । इस प्रकार ये द्विसंयोगी तीन भंग हुए । मिश्री-मिश्रित दुग्ध हित, सुख और प्रिय है, क्योकि स्वस्थ पुरुषके आल्हाद, सुख और अनुरागका कारण होता है । यह त्रिसंयोगी एक भंग है । उक्त सब भंग मिलाकर नोकर्मतव्यतिरिक्त-नोआगमद्रव्यप्रयके सात भंग हो जाते हैं।
चूर्णिसू०--यह नोआगम-द्रव्यमेयनिक्षेप नैगमनयका विपय है ॥२८॥ " विशेषार्थ-इस निक्षेपको नैगमनयका विषय बतलानेका कारण यह है कि एक ही वस्तुमं युगपत् और क्रमशः हित, सुख और प्रियभाव माना गया है, तथा हित, सुख और प्रियस्वरूप पृथग्भूत भी द्रव्योके प्रेयभावकी अपेक्षा एकत्व देखा जाता है ।।
चूर्णिसू०--संग्रहनय, व्यवहारनय और ऋजुसूत्रनयकी अपेक्षा सर्व द्रव्य प्रेय है ॥२९॥ . विशेषार्थ-प्रत्येक द्रव्य किसी न किसी जीवके, किसी न किसी कालमे प्रिय देखा जाता है। यहॉतक कि मरणका कारणभूत विप भी जीवनसे निराश हुए जीवोके प्रिय देखा जाता है । इसलिए उक्त तीनो नयोकी दृष्टिमे सभी द्रव्य प्रेय हैं। .
चूर्णिसू०-भावप्रेयनिक्षेपको स्थापित करना चाहिए ।।३०॥
विशेषार्थ-भावप्रेयनिक्षेपका वर्णन करना क्रमप्राप्त था, किन्तु वह वहुवर्णनीय है, और इस ग्रन्थका प्रधान विषय है, इस कारण चूर्णिसूत्रकार उसे स्थापित कर रहे हैं, क्योकि, आगे यथावसर अनेक अनुयोगद्वारांसे विस्तारपूर्वक उसका वर्णन किया जायगा ।