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निक्षेपोंमें नय-योजना
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२४. गम - संगह ववहारा सत्रे इच्छति । २५. उजुसुदो ठवणवज्जे ।
गा० १३-१४ ]
२६. ( सद्दणस्स ) णामं भावो च ।
विशेषार्थ - प्रय यह शब्द प्रेयनामनिक्षेप है । किसी चेतन या अचेतन पदार्थ मे 'यह वही है' इस प्रकार से प्रयभावकी स्थापना करनेको प्रेयस्थापनानिक्षेप कहते है । अतीत या अनागत कालमे रागरूप होनेवाले या वर्तमान मे रागविषयक ज्ञानसे रहित पुरुपको प्रयद्रव्यनिक्षेप कहते है । वर्तमानकालमें रागभावसे परिणत या रागशास्त्र के ज्ञायक पुरुषको प्रयभावनिक्षेप कहते है ।
अब चूर्णिकार उक्त निक्षेपोके स्वामिस्वरूप नयोका निरूपण करते है.
चूर्णिसू० – नैगमनय, संग्रहनय और व्यवहारनय, ये तीनो द्रव्यार्थिकनय उपयुक्त सभी निक्षेपको स्वीकार करते है ॥२४॥
विशेषार्थ- — यतः नामनिक्षेप तद्भव - सामान्य और सादृश्यसामान्यको अवलम्वन करके प्रवृत्त होता है, स्थापनानिक्षेप भी सादृश्य-सामान्यको अवलम्बन करता है और द्रव्यनिक्षेप भी दोनो प्रकारके सामान्योके निमित्तसे होता है; अतएव इन तीनो निक्षेपोके स्वामी नैगमनय, संग्रहनय और व्यवहारनय होते है, क्योकि, ये तीनो द्रव्यार्थिकनय है और सामान्यको विषय करना ही द्रव्यार्थिकनयका काम है । वर्तमान पर्यायसे उपलक्षित द्रव्यको भाव कहते हैं, इसलिए, अथवा द्रव्यको छोड़कर पर्याय पाई नहीं जाती है, इसलिए भावनिक्षेपके भी स्वामी उक्त तीनो द्रव्यार्थिकनय बन जाते है ।
चूर्णिसू० -- ऋजुसूत्रनय स्थापनानिक्षेपको छोड़कर शेप तीन निक्षेपोको ग्रहण करता है ॥२५॥
विशेषार्थ- - ऋजुसूत्रनय स्थापनानिक्षेपको विषय नही करता है, इसका कारण यह है कि इस नयमे सादृश्यलक्षण सामान्यका अभाव है । और, सादृश्य अथवा एकत्वके विना स्थापनानिक्षेप संभव नही हैं । इसलिए ऋजुसूत्रनय स्थापनानिक्षेपको छोड़कर शेष तीन निक्षेपको ही ग्रहण करता है ।
चूर्णिसू० - नामनिक्षेप और भावनिक्षेप शब्दनयके विषय हैं ॥२६॥
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विशेषार्थ - व्यंजननय, पर्यायनय और शब्दनय, ये तीनो एकार्थक नाम हैं । शब्दजयके शब्द, समभिरूढ़ और एवंभूत, ये तीन भेद हैं । ये तीनो ही नय नामनिक्षेप और भावनिक्षेपको विषय करते है, क्योकि, शब्दनयोमे स्थापनानिक्षेप और द्रव्यनिक्षेपका व्यवहार नहीं हो सकता है ।
पहले बतलाये गये चार निक्षेपोमेसे आदिके दो निक्षेपोका अर्थ सुगम है, अतएव उन्हे न कहकर द्रव्यनिक्षेपके भेदरूप नोआगम द्रव्यप्रयका स्वरूप - निरूपण करनेके लिए उत्तरसूत्र कहते हैं---
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