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कसाय पाहुड सुत्त
[पेजदोसविहत्ती २१ तस्स पाहुडस्स दुवे णामधेजाणि । तं जहा-पेजदोसपाहुडेत्ति चि, कसायपाहुडेत्ति वि । तत्थ अलिवाहरण-णिप्पण्णं पेजदोसपाहुडं । २२. णयदो णिप्पणं कसायपाहुडं । २३. तत्थ पेज्ज णिक्विवियव्व-णामपेज्ज ठवणपेज्जं दव्यपेज्जं भावपेज्जं चेदि। नाम किस अभिप्रायसे कहे हैं इस बातको वतलाते हुए यतिवृपभाचार्य चूर्णिसूत्र कहते है
चूर्णिसू० ---- उस पाहुडके दो नाम हैं । वे इस प्रकार हैं:-पेजदोसपाहुड (प्रयोद्वेषप्राभृत) और कसायपाहुड (कपाथप्राभृत)। इनमेसे पेज्जदोसपाहुड यह अभिव्याहरणसे निष्पन्न हुआ अर्थानुसारी नाम है ॥२१॥
विशेपार्थ-अपनेमे प्रतिवद्ध अर्थके व्याहरण अर्थात् कथनको अभिव्याहरण कहते हैं । पेजदोसपाहुड यह अभिव्याहरण-निष्पन्न नाम है, क्योकि पेज रागभावको कहते हैं और दोस नाम द्वेषभावका है। ये राग और द्वेषरूप अर्थ न केवल पेज शब्दके द्वारा कहे जा सकते है और न केवल दोस शब्दके द्वारा ही। यदि इन दोनो अर्थोंका कथन केवल पेज या दोस शब्दके द्वारा माना जाय, तो राग और द्वेषमें पर्यायभेद नहीं वनेगा । यतः राग
और द्वेषमें पर्याय-भेद पाया जाता है, अत: इनके वाचक शब्द भी स्वतंत्र ही होना चाहिए। इस प्रकार राग और द्वेष-जो कि संसार-परिभ्रमणके कारण हैं-उनके बंध और मोक्षका इस पाहुड-प्राभूत या शास्त्रमे वर्णन किया गया है। इसलिए पेजदोसपाहुड यह अभिव्याहरण-निष्पन्न अर्थानुसारी नाम है। पेनदोसपाहुड यह नाम समभिरूढनयकी अपेक्षा जानना चाहिए, क्योकि समभिरूढनय अविवक्षित अनेक अर्थों को छोड़कर विवक्षित एक अर्थको ही ग्रहण करता है।
चूर्णिस०-कसायपाहुड यह नाम नयसे निष्पन्न है ॥२२॥
विशेषार्थ-जीवके उत्तमक्षमा आदि स्वाभाविक भावोके या चारित्ररूप धर्मके विनाश करनेसे क्रोध आदि कपाय कहे जाते हैं । कपाय सामान्य है तथा राग और द्वेष विशेप हैं। कपायका पेज और दोस दोनोमे अन्वय पाया जाता है, अतएव कसायपाहुड यह नाम द्रव्यार्थिकनयकी अपेक्षा जानना चाहिए । तथा राग और द्वेष कपायोसे उत्पन्न होते हैं। इस ग्रन्थमे कपायोंकी इन्ही रागद्वेपरूप पर्यायोका वर्णन किया गया है इस अपेक्षा पेजदोसपाहुड यह नाम पर्यायाथिक नयकी अपेक्षासे निष्पन्न हुआ है, तथापि उसकी यहाँ विवक्षा नहीं की है । क्योकि, चूर्णिकारको उसका अभिव्याहरण-निष्पन्न अर्थ वताना अभीष्ट है ।
पेज, दोस, कसाय और पाहुड, ये सब शब्द अनेक अर्थोंमे वर्तमान हैं, इसलिए प्रयोजनभूत अर्थके निरूपण करनेके लिए यतिवृपभाचार्य निक्षेपसूत्र कहते हैं
चूर्णिसू०-~-उनमेसे पहले पेन्ज अर्थात् प्रेय का निक्षेप करना चाहिए-नामप्रेय, स्थापनाप्रय, द्रव्यप्रय और भावप्रय ।।२३।।
१ अहिमुहल्स अप्पाणम्मि पडिबद्धस्त अत्यस्स बाहरण कद्दण, अभिवाहरणं । तेण णिप्पण्ण अभिवाहरणणिप्पण।
जयध